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जोधपुर. गायों में फैली लंपी स्किन बीमारी के लक्षण जोधपुर जिले के खुले मैदानों स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्यजीवों में अब तक नहीं मिले है। लंपी बीमारी से अब तक एक भी वन्यजीव की मौत नहीं हुई है। माचिया जैविक उद्यान के वन्यजीव चिकित्सक डॉ. ज्ञानप्रकाश ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि लंपी बीमारी को लेकर कुछ लोग सोशल मीडिया पर हाइपोडर्मा मक्खी के संक्रमण से जोड़कर प्रसारित कर रहे है। दावा किया जा रहा है कि लंपी चर्म रोग से जंगलों में स्वच्छन्द विचरण करने वाले वन्यजीव भी ग्रसित हो रहे हैं । उन्होंने बताया कि लंपी और हाइपोडर्मा दोनों बीमारियों के बीच काफी अंतर है। लंपी बीमारी मुख्य रूप से अब तक केवल गौ वंश में रिपोर्ट हुई है। इसमें मवेशी को पूरे शरीर पर किसी भी पर चमड़ी में उभार बनकर बुखार आता है। बीमार पशु से निकट संपर्क , बीमार पशु पर लगे हुए बाह्य परजीवी चिंचड़े आदि संक्रमण अन्य स्वस्थ पशु में फैलाते हैं ।

विशेषज्ञ पशु चिकित्सक ही बता सकता है बीमारियों का अंतर

हाइपोडर्मा मक्खी होस्ट पशु के बालों में घुस कर चमड़ी समीप अंडे देती है ।अनुकूल वातावरण में अंडे से लार्वा निकल कर चमड़ी के नीचे चला जाता है । जब यह लार्वा आकार में बड़ा हो जाता है तो चमड़ी का यह उभार लंपी स्किन बीमारी के जैसा लगता है । विशेषज्ञ पशु चिकित्सक ही दोनों में अंतर स्पष्ट कर सकते हैं । हाइपोडर्मा बीमारी में मुख्य रूप से गर्दन, पीठ, छाती, पेट, कमर, जांघ के बाहरी हिस्से पर चमड़ी के नीचे उभार बनता है। इसमें मक्खी का लार्वा पाया जाता है । इस उभार पर एक महीन छेद पाया जाता है जिससे परजीवी सांस लेता है । पालतू पशुओं में हाइपोडर्मा बीमारी का पूर्ण रूप से उपचार व इलाज संभव है। खुले मैदानों स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्यजीवों की प्रकृति के कारण प्रत्येक वन्यजीव को पकड़कर इलाज किया जाना संभव नहीं है। चूंकि हाइपोडर्मा बीमारी पूर्ण रूप से जानलेवा नहीं है , और मक्खी का जीवन चक्र पूर्ण होने पर ग्रसित पशु अथवा वन्यजीव स्वतः ही ठीक हो जाता है ।

सावधानी बरतनी जरूरी

वन्यजीव चिकित्सालय व पूरे जिले में अब तक वन्यजीवों में लंपी बीमारी पाए जाने का एक भी मामला सामने नहीं आया है। लंपी स्किन बीमारी का संक्रमण वन्यजीवों में फैलने से रोकने के लिए बीमार पालतू पशु का उपचार क्षेत्र के नजदीकी पंजीकृत पशुचिकित्सक के परामर्श अनुसार किया जाना चाहिए । बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग ही रखकर उन्हें वन्यजीव विचरण क्षेत्रों में जाने से रोकना चाहिए।

डॉ. ज्ञानप्रकाश, वन्यजीव चिकित्सा अधिकारी, माचिया जैविक उद्यान रेस्क्यू सेंटर

Source: Jodhpur

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