गजेंद्र सिंह दहिया
जोधपुर. अब तक यह माना जाता है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को बीमार करने के लिए जिम्मेदार केलेपसैला न्यूमोनी सहित अन्य बैक्टिरिया में आरएमपी फैमिली के जीन उनके खतरनाक व्यवहार के लिए उत्तरदायी है लेकिन एम्स जोधपुर के एक मरीज में मिले इस बैक्टिरया में आरएमपी फैमिली का एक जीन भी नहीं मिला। आइआइटी जोधपुर ने बैक्टिरिया की जिनोम सिक्वेंसिंग की, जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है कि कोई अन्य कारक है जो बैक्टिरिया को एंटीबायोटिक दवाइयों और मनुष्य की प्रतिरक्षा तंत्र के विरुद्ध मजबूत करके घातक बना रहा है। यह शोध माइक्रोबायोलॉजी स्पेक्ट्रेम नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
क्या है अस्पताल जनित बीमारी
अस्पताल में कई तरह के बैक्टिरिया होते हैं जिनसे मरीज के और अधिक संक्रमित होने का खतरा रहता है। इन्हें अस्पताल जनित बीमारी कहा जाता है। पूरे विश्व में अस्पताल जनित बीमारी में सबसे टॉप पर केलेपसैला न्यूमोनी बैक्टिरिया है जो सर्वाधिक न्यूमोनिया, रक्त संक्रमण, आइसीयू में भर्ती मरीज, नवजात बच्चों को निशाना बनाता है।
बैक्टिरिया के चारों ओर बन जाता है म्यूकस
दरअसल कई बैक्टिरिया अपने चारों और एक मोटी झिल्ली बना लेते हैं जिसको हाइपरम्यूकोविसकस कहते हैं। आइआइटी जोधपुर, एम्स जोधपुर, वैल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी वैल्लोर ने अपने रिसर्च में केलेपसैला न्यूमोनी बैक्टिरिया का पी-34 स्ट्रेन लिया था। सामान्यत: 5 मिमी से अधिक मोटी म्यूकस होने के बाद बैक्टिरिया अत्यधिक संक्रमणकारी हो जाता है, जिससे एंटीबायोटिक दवाइयां और प्रतिरक्षा तंत्र उसे भेद नहीं पाता। इसका कोई इलाज नहीं होता और कई बार मरीज को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। एम्स के मरीज में मिले इस बैक्टिरिया में म्यूकस की मोटाई 65 मिमी थी। अब तक यह माना जाता था कि इन बैक्टिरिया में हाइपर म्यूकोविसकोसिटी के लिए आरएमपीए, आरएमपीए-2, आरएमपीसी, आरएमपीडी जीन जिम्मेदार होते हैं लेकिन एम्स के मरीज में मिले केलेपसैला न्यूमोनी में ये चारों जीन अनुपस्थित मिले जिससे वैज्ञानिक चिंतित है।
इन्होंने किया रिसर्च
आइआइटी जोधपुर के बायोसाइंस व बायोइंजीनियरिंग विभाग के डॉ शंकर मनोहरण उनके पीएचडी विद्यार्थी आस्था कपूर, तमल डे, अरध्न्यू चक्रवर्ती, एम्स जोधपुर की डॉ विजयलक्ष्मी नाग, वीआईटी वैल्लोर के डॉ कार्तिकेयन शिवाशणमुगन ने रिसर्च किया।
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केलेपसैला न्यूमोनी बैक्टिरिया के पी-34 स्ट्रेन में कोई और मैकेनिज्म है जो उसके घातक बना रहा है। इस पर अभी और शोध किया जा रहा है।
डॉ शंकर मनोहरण, बायोसाइंस विभाग, आइआइटी जोधपुर
Source: Jodhpur