जोधपुर
मारवाड़ के लोग अब अफ्रीकी महाद्वीपीय देशों में पाई जाने वाली दालें खाएंगे। मारवाड़ की जलवायु व मौसमीय परििस्थतियां अफ्रीकी देशों की जलवायु के उपयुक्त पाई गई है। जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय में अफ्रीकी दालों पर शोध किया जा रहे है, जिनके सकारात्मक परिणाम आए है।
कृषि विश्वविद्यालय को पौषक तत्वों से भरपूर अप्रचलित दालों (ऑर्फन लेग्यूम्स) की फसलों के लिए कार्य करने वाले अन्तरराष्ट्रीय क्रिक हाउस ट्रस्ट (लंदन) की ओर से प्रोजेक्ट दिया गया है। प्रोजेक्ट के तहत कृषि विश्वविद्यालय व अफ्रीका अप्रचलित दालों पर शोध कर रहे है। देश में ऑर्फन लेग्यूम्स पर शोध के लिए यह प्रोजेक्ट केवल कृषि विवि को ही मिला है। क्रिक हाउस टीम की ओर से किए गए अध्ययन के बाद अफ्रीकी देशों की जलवायु के अनुकूल स्थितियां मारवाड़ में पाइ गई। इसके बाद यह प्रोजेक्ट कृषि विवि को मिला।
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अफ्रीकी दालों मरामा बीन, बम्बारा नट सहित 7 दालें शामिल
प्रोजेक्ट के तहत कृषि विवि में अफ्रीकी दालों मरामा बीन, बम्बारा नट सहित कुल्थी, सेमपली, चंवला, मूंग व मोठ पर प्रयोग किए जा रहे है। इनमें से बम्बारा नट और मरामा बीन भारत के लिए नई फसलें हैं। यह फसलें पश्चिमी राजस्थान में स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं और अब तक हुए शोधों में इनके अच्छे परिणाम आए है। इनके अलावा कुल्थी, सेमफली आदि का प्रयोग भी मारवाड़ भी तुलनात्मक रूप से कम है। विवि के शोध फॉर्म पर इन फसलों की 50-50 लाइनों में करीब 250 किस्में लगाकर नियमित अवलोकन किया जा रहा है।
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किस्मों का आदान-प्रदान होगा
प्रोजेक्ट के तहत कृषि विश्वविद्यालय इन तैयार फसलों की उन्नत किस्मों को अफ्रीका को शोध के लिए दी है। जिन पर अफ्रीका कार्य कर रहा है। दोनों देशों में आदान-प्रदान की गई किस्मों के शोध के बाद श्रेष्ठ व अच्छा परिणाम देने वाली किस्म को किसानों को उपलब्ध कराइ जाएगी।
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किसानों को वितरित किए बीज
अच्छी किस्मों की पहचान,परीक्षण और अनुकूलन के लिए फलोदी, गुडामालानी, सिरोही, समदड़ी, जालोर व भावी में किसानों को सेमफली, मूंग आदि फसलों के बीज वितरित किए गए है।
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अफ्रीकी जलवायु के समान परििस्थतियां
– अफ्रीकी देशों में कम पानी, तेज गर्मी, रेगिस्तानी मिट्टी की स्थिति व जलवायु मारवाड़ की जलवायु के लगभग समान
– बहुत कम वर्षा की आवश्यकता
– शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
– ये दालें अमीनो एसिड, प्रोटीन व पौषक तत्वों से भरपूर
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किसानों की आय बढ़ेगी, मवेशियों के लिए भी उपयोगी
– पश्चिमी राजस्थान में इन दलहनी फसलों के आने से कृषक समुदाय सामाजिक व आर्थिक रूप से लाभान्वित होगा
– यह फसलें किसानों को अतिरिक्त आय के स्रोत के रूप में भी कार्य करेगी
– शुष्क मौसम के दौरान यह फसलें मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध कराएगी
– यह मनुष्यों के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार के लिए उपयुक्त रहेंगी
– जमीन की उत्पादकता बरकरार रहेगी
– देश की दलहन में खाद्य सुरक्षा व आत्मनिर्भरता भी सुनिश्चित होगी
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अन्तरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट पर अनुभवी व युवा वैज्ञानिकों की टीम शोध कार्य कर रही है । अच्छे परिणाम आ रहे है।
डॉ एमएल मेहरिया, जनसंपर्क अधिकारी
कृषि विवि, जोधपुर।
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Source: Jodhpur