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बाड़मेर. कृषि में तकनीक के नित नए प्रयोग से किसानों की तकदीर बदल रही है। वहीं जरूरत से ज्यादा उपयोग हो रहे रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक मरुधरा का स्वास्थ्य बिगाड़ रहे हैं। जिले में सिंचित 3 लाख 12 हजार हैक्टेयर में सबसे ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का उपयोग की बात सामने आई है।

इनमें से करीब आधे किसानों ने ही अपने जमीन व पानी की जांच करवाई है। ऐसे में करीब आधे किसान अनुमान से जरूरत का दो से तीन गुणा उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा उर्वरक से फसल को फायदा नहीं होता है। जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है, पर्यावरण को नुकसान तथा प्रति हैक्टेयर लागत भी कई गुणा बढ़ जाती है।

अधिक उपयोग तो यह होता है असर

अधिक उत्पादन के चक्कर में किसान अनुशंसित मात्रा से अधिक रासायनिक उर्वरक प्रयोग करते हैं। इससे मृदा की रासायनिक व जैविक प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वहीं पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है। जिले की मृदा में अधिकांश कार्बनिक पदार्थ, पोषक तत्वों में नाइट्रोजन तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में जिंक की कमी है।

नाइट्रोजन पौधों की वानस्पतिक वृद्धि व प्रोटीन निर्माण करता है। वहीं जिंक से अमीनो अम्ल, विटामिन व अन्य एंजाइमों का निर्माण होता है। नाइट्रोजन से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि व गुणवत्ता कम हो रही है।

यह करें किसान

किसान खेत की मिट्टी की जांच के लिए ऊपरी हल्की परत को हटाकर 6 से 9 इंच वी आकार का गड्ढा बनाएं। इसके बाद उसके किनारों की करीब आधा किलो मिट्टी निकालें। इस तरह खेत में चार से पांच जगह मिट्टी निकाल कर उसे अच्छी तरह मिलाकर करीब आध किलो मिट्टी का सैंपल लेकर नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर जांच करवाएं।

एेसे ही एक घंटा ट्यूबवेल चलने के बाद पानी का सैंपल लेकर जांच करवाएं। इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों से उर्वरकों के उपयोग की सलाह लेकर मृदा की सेहत का ध्यान रखा जा सकता है।

जिला मुख्यालय पर नहीं होती जांच

कृषि विभाग कार्यालय में मिट्टी-पानी की जांच के लिए लगी लैब लम्बे समय से बंद है। पद रिक्तता के चलते किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। किसान कृषि विज्ञान केंद्र गुड़ामालानी तथा दांता में मिट्टी व पानी की जांच करवा सकते हैं।

2013 से हुई थी शुरूआत

संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के रोम स्थित मुख्यालय में खराब हो रही कृषि भूमि को लेकर चिंता जताई गई। यहीं से इसकी शुरूआत मानी जाती है। इसके बाद साल 2002 में इस पर पहली बार विचार आया था, इसकी पहल थाइलैंड ने की थी।

साल 2013 में यूएन की 68वीं आमसभा में इंटरनेशनल मृदा दिवस मनाने का प्रस्ताव रखते हुए इसकी शुरूआत हुई। दिवस के लिए 5 दिसम्बर का दिन तय किया गया।

फैक्ट फाइल:

17 लाख हैक्टेयर में होती है खेती
9 लाख हैक्टेयर में बाजरा

1.25 लाख हैक्टेयर में जीरा
55 हजार हैक्टेयर में ईसब

35 हजार हैक्टेयर में अरण्डी
5 हजार हैक्टेयर में अनार

112 हैक्टेयर में खजूर व अन्य
-3.12 लाख हैक्टेयर कुल सिंचित क्षेत्र

मृदा में पोषक तत्वों की उपस्थिति

पोषक तत्व औसत स्तर
नाइट्रोजन 135-210 किग्रा/ है.

फोस्फोरस 13-20 किग्रा/है.
पोटेशियम 220-260 किग्रा/है.

सल्फर 7.8-8.8 पीपीएम
जिंंक 0.20- 0.50 पीपीएम

आयरन 2.20-3.10 पीपीएम
मैग्नीज 3.20-3.9 पीपीएम

कॉपर 0.21-0.4 पीपीएम
जैविक कार्बन 0.12-0.22 प्रतिशत

सही मात्रा में हो उर्वरकों का उपयोग

अत्यधिक केमिकल के उपयोग से मृदा उर्वरकता खत्म हो रही है। इसे बनाए रखने के लिए जैविक खेती के साथ मृदा जांच के बाद अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए।

साथ ही उर्वरकों का सही समय व मात्रा तथा उपयुक्त विधि से उपयोग करना चाहिए। इससे मृदा को कम नुकसान तथा प्रति हैक्टेयर लागत में भी कमी आती है।

– डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक, केवीके गुड़ामालानी

Source: Barmer News

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