संदीप पुरोहित
जोधपुर. अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला देने वाले 18 फरवरी, 1946 नाविक विद्रोह में मारवाड़ के तीन क्रांतिकारी शामिल थे। रेतीले धोरों के तीन जांबाजों ने समंदर में ब्रिटिश हुकूमत को ललकार कर जलजला ला दिया था…यूनियन जैक को उतार कर तिरंगा लहरा दिया था। जोधपुर जिले के शेरगढ़ के कैप्टन तथा केतू गांव के मोहन सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में रहे हैं। बाड़मेर जिले के गुड़ानाल गांव के दयाल सिंह राजपुरोहित ने विद्रोह को व्यापक बनाने में अहम भूमिका का निर्वाह किया था। उनकी शौर्यगाथा केवल किताबों में जरूर है, लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव में उनकी स्मृतियों को पूरी तरह विस्मृत कर दिया गया है। 18 फरवरी को स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष को धार देने वाले इस नाविक विद्रोह की 77वीं वर्ष गांठ है, लेकिन इन क्रांतिकारियों के साहस और त्याग को नमन करने का कहीं कोई आयोजन नहीं दिख रहा है।
नाविक विद्रोह में प्रमुख क्रांतिकारी
राजस्थान के धौलपुर से बाबा युगल दास शर्मा, गुड़ानाल (बाड़मेर)से दयालसिंह राजपुरोहित, शेरगढ़ (जोधपुर) से कैप्टन भाटी तथा केतू ( जोधपुर) से मोहन सिंह। बंगाल के बी.सी. दत्ता, विश्वनाथ बोस, सोरेन नाग, सलिल श्याम, एस.एन. बनर्जी, बी.पी. सिंह, आर.के. सिंह, नुरूल इस्लाम, अशरफ खान तथा एम.एस. खान। आन्ध्रप्रदेश के तेलंगाना से एस.एन. देवाराज, ए.एच. हजारी तथा वाई गणप्पा।
नाविक विद्रोह में मारवाड़ के तीन क्रांतिकारी
…आजादी के अमृत महोत्सव में भी याद नहीं आए
नाविकों के विद्रोह पर जो तीन विश्वसनीय पुस्तकें उपलब्ध हैं, उनमें से दो तो स्वयं विद्रोही नाविक विश्वनाथ बोस व बी.सी. दत्ता ने लिखी है। तीसरी पुस्तक पर्सी गोर्जी ने लिखी है, जो तत्कालीन रॉयल इंडियन नेवी में विद्रोह के समय अंग्रेज अफसर थे। विद्रोही नाविकों की यादें शेष नहीं रही। विस्मृति इतनी व्यापक रही कि जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना सर्वस्त्र न्यौछावर किया, उन्हें आजादी के अमृत महोत्सव पर भी याद नहीं किया जा रहा है। न तो सरकार, न नौसेना और न ही नागरिकों ने कोई श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि समारोह के आयोजन के एकाध असफल प्रयास अवश्य हुए, पर नौसेना या किसी संस्थान या प्रतिष्ठान के बीड़ा नहीं उठाने से स्मृतियां सहेजने के प्रयास ठोस स्वरूप में सामने नहीं आ पाए।
अहम भूमिका में राजपुरोहित
दयाल सिंह राजपुरोहित तथा बी.सी. दत्ता उस समय सिग्नैलिंग ट्रैनिंग स्कूल, कोलाबा में ही प्रशिक्षु नाविक थे। उन्होंनेे भूख हड़ताल शुरू करने व विद्रोह के विस्तार में अहम भूमिका निभाई। उस समय नर्बदा जहाज पर विश्वनाथ बोस तैनात थे। सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी के सदस्य बी.सी. दत्ता व विश्वनाथ बोस ने नाविक विद्रोह पर प्रामाणिक पुस्तकें भी लिखी। उनमें इसका पूरा विवरण दर्ज है।
कैलाश राजपुरोहित
Source: Jodhpur