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बाड़मेर पत्रिका.
मैं थार एक्सप्रेस… पाकिस्तान में हिन्दू महज दो प्रतिशत रहे है। केवल 40 लाख का आंकड़ा है। 1947 में जब बंटवारा हुुआ तब वहां 44 लाख हिन्दू थे। बांग्लादेश अलग हुुआ, 1965 और 1971 के युद्ध भी हुए। अब हिन्दुओं की संख्या घटने का बड़ा कारण है पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन करवाना। बीते दिनों एक सांसद का विडियो वायरल हुुआ जिसमें वह पाकिस्तान की संसद में बोल रहा था कि धर्म परिवर्तन करना बंद करे। हिन्दू बेटियों से जबरन निकाह करवाना जुल्म है औैर अब हम इससे दु:खी हो गए हैै। हालात तो यह है कि मेघवाल, भील और पिछड़े तबके के लोगों के पास पहले से ही रोजगार का अभाव था और अब पाकिस्तान में महंगाई इस कदर बढ़ गई है कि जिनके आर्थिक हालात खराब है वो रोटी नसीब नहीं होने पर पानी पीकर गुुजारा कर रहे है। पाकिस्तान में इनकी सुनवाई न पुलिस कर रही है और न ही कोर्ट कचहरी। अब जाएं तो जाएं कहां? पाकिस्तान का मानवाधिकार आयोग भी कदम पीछे रख रहा है। आर्थिक हालात जिनके ठीक है वे पाकिस्तान छोड़कर दुुबई व अन्य मुल्कों में पहुंच गए है। अब रहे वो है जो या तो बहुत ज्यादा दबंग है या बहुत ही कमजोर। इन कमजोर वर्ग पर लगातार धर्म परिवर्तन का दबाव बढ़ता जा रहा है। सिंध से लेकर कराची तक हर हफ्ते ऐसे दर्जनों लोगों पर जुल्म हो रहे है। अत्याचार की हद यह है कि नाबालिग बेटियों को उठाकर उनका निकाह करवाया जा रहा है। दूसरी और तीसरी बीवी के तौर पर इनको रखा जा रहा है। ये हिन्दू परिवार कहीं न कहीं भारत से जुड़े है। यहां अपनी पीड़ा बताते है लेकिन इसका हल क्या? कहते है कि इधर आ जाओ लेकिन रास्ता ही नहीं है। थार एक्सप्रेस बंद है। यह शुरू होती तो कुछ दिन ही सही इनको यहां आने पर सकून नसीब होता। 1947 में 15 प्रतिशत लोग वहां थे तो एक बड़ा तबका था। लिहाजा यह इत्मीनान था कि इतने सारे लोग है तो हम एकजुट होकर लड़ लेंगे लेकिन अब…, अब तो केवल मुट्ठीभर ही रहे है। सिंध के इलाके में सर्वाधिक है। हिन्दू आबादी लगातार यह मांग कर रही है कि थार एक्सप्रेस शुरू की जाए…इधर हों चाहे उधर। इस बारे में पाक विस्थापित परिवार के गणपतसिंह कहते है कि जब तक रिश्तेदारी है तब तक यह दर्द जिंदा है। सच मानिए जिस दिन रिश्ते खत्म हो गए उसके बाद कोई मांग नहीं रहेगी। दोनों मुल्कों का तनाव हमेशा यह दर्द देता है कि उधर क्या हो रहा है? पहले तो केवल खबर आती थी, अब तो मोबाइल के जरिए सारे हालात पता चल जाते है। हां, पर यह हाल जानकर और दुख होता है। थार एक्सप्रेस शुरू हों तो बूढ़े मां-बाप से मिलने बेटा इधर जाए या उधर जाए। यह भी एक दिलासा है कि उधर बैठे लोगों को यह फिक्र हों कि जिन पर जुल्म कर रहे है उनके लोग इधर आ सकते है तो भी वे रुकेंगे। जरूरी है कि इस रेल को शुरू किया जाए। तब तक…जब तक हम अंतिम पीढ़ी के दो प्रतिशत जिंदा है…।

Source: Barmer News

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