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देश को पंचायती राज की सौगात देने वाला राजस्थान नया इतिहास गढ़ रहा है। यहां अब अंगूठाटेक नहीं बल्कि फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली महिलाएं पंचायती राज की कमान संभाल रही हैं। रबर स्टैंप बनने के दिन भी अब गए। जब चुनाव तो महिला जीतती थी लेकिन सरपंची उनके पति संभालते थे। अब महिला सरंपच घूंघट की आड़ से निकलकर अपनी पंचायतों में नवाचार कर रही हैं। न केवल सरकारी योजनाएं, बल्कि गांवों की तस्वीर बदलने में सीएसआर का भी बेहतर ढंग से उपयोग कर रही है। ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करने में सूझबूझ का परिचय दे रही हैं। कई पंचायतों में इनका लाभ मिलता दिख रहा है।

 

बलाड़ा पंचायत समिति की प्रधान प्रगति कुमारी खेजड़ला अजमेर के मेयो कॉलेज में पढ़ी हैं। वे क्रिकेट और शूटिंग की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी भी रहीं हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम चला रही हैं। डेयरी और खुद का व्यापार चलाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करने के साथ ही राजीविका से जुडऩे के लिए महिलाओं को तैयार कर रही है। ग्रामीणों की समस्याएंसुनने और उनके समाधान के लिए खुद का मैकेनिज्म तैयार किया है।

महिला जनप्रतिनिधियों पर लगा ‘रबर स्टांप’ का टैग हटाने में लूणी प्रधान वाटिका राजपुरोहित काफी हद तक सफल रहीं हैं। उन्होंने ग्राम पंचायतों-समिति की बैठकों में महिला जनप्रतिनिधियों का शामिल होना अनिवार्य कर दिया है। सीए कर चुकीं वाटिका ने कहा कि उनके लिए यह नया चैलेंज था।

खारिया खंगार ग्राम पंचायत की सरपंच प्रमिला चौधरी ने खुद की काबिलियत से नई पहचान गढ़ी है। वह ग्रेजुएट है। पंचायत का पूरा काम खुद संभालती है। कई कंपनियों से सीएसआर से पंचायत में नवाचार कराए। सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी। खारिया खंगार प्रदेश की मॉडल पंचायत है। सरपंच संघ की अध्यक्ष है। खुद का व्यापार भी चलाती हैं। सरकार के साथ-साथ खुद के पैसों से भी विकास के काम करा दिए।

Source: Jodhpur

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