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रतन दवे
बाड़मेर.
बाप बनकर नहीं खा सकते है लेकिन बेटा बनकर खा सकते है, यह कहावत है लेकिन जब बेटी बनकर मायरे की झोली फैला दे तो सहानुभूति किस कदर दिल को छूती है यह करिश्मा इस बार बाड़मेर सीट से हुआ। पार्टी ने टिकट नहीं दिया और सामने तीन बार जीते हुए विधायक।यहां प्रियंका चौधरी जो गंगाराम चौधरी की पोती है बागी हुई और इतने वोट झोली में आ गए कि वोटर्स ने उसका मायरा भर दिया।
दादा गंगाराम चौधरी के रहते हुए ही प्रियंका बाड़मेर में राजनीति में आ गई। 2013 का चुनाव लड़़ा लेकिन हार गई। 2018 में उसे टिकट नहीं मिला फिर भी लगातार सक्रिय रही। 2023 में प्रबल दावेदारी के बावजूद उसे टिकट नहीं मिला। प्रियंका ने बगावत कर निर्दलीय टिकट लिया और चुनाव मैदान में आई। टिकट कटने पर उसके आंसू निकले और नामांकन के समय ही झोली फैलाते हुए बोली कि वह बाड़मेर की बेटी है। अब उसका मायरा भरें..। वह केवल झोली भरकर वोट मांग रही है। पूरे चुनाव कैम्पेन में यही सहानुभूति और शब्द दोहराती रही और विशेषकर महिला मतदाताओं के दिल तक पहुंच गए। प्रियंका ने तीन बार से लगातार जीत रहे और चुनावों से पहले कांग्रेस की ओर से सर्वाधिक जीत की संभावना वाले विधायक मेवाराम जैन को हराया।
भाजपा तीसरे नंबर पर रही
भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी बिखराव हुआ और बागी प्रियंका को वोट किए गए। इसी का परिणाम रहा हैै कि भाजपा प्रत्याशी दीपक कड़वासरा तीसरे नंबर तो रहे ही उनको महज 5355 वोट ही मिल पाए।
समाज हुआ एक-अन्य को जोड़ा
प्रियंका के लिए जाट समाज ने एकता दिखाई इधर अन्य समाज के लोग भी सहानुभूति से जुड़ते हुए आगे आए और उन्होंने अपने वोट देने का मानस ऐन समय पर बदलते हुए जीत प्रियंका के नाम लिख दी।
बागी हुई पर खिलाफ नहीं
भाजपा से टिकट कटने के बावजूद भी प्रियंका भाजपा के खिलाफ नहीं हुई। उसने भाजपा के शीर्ष नेताओं से भी यह कहते हुए टिकट अंत तक मांगी कि उसने बहुत मेहनत की है। चुनाव कैम्पेन में भी भाजपा के खिलाफ नहीं हुई। इस कारण भाजपा के से जुड़े कुछ लोग भी खुलकर साथ रहे।

Source: Barmer News

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