जानिए रविन्द्रसिंह भाटी, रूमादेवी और अनवर खां कैसे बढ़े आगे?
रतन दवे
बाड़मेर पत्रिका.
अंग्रेजी और हिन्दी बोलने की हौड़ के दौर में देसी बोली बोलने वालों का बोलबाला होने लगा है। देसी अंदाज को इतना पसंद किया जाने लगा है कि अब ये इसके बूते छा भी नहीं रहे हैै पद और पुरस्कार तक पहुंच गए हैै। आधुनिक यूथ भी अपने व्यवहार में अब देसीपना ऐसे लोगों को देखकर लाने लगा है।
रविन्द्रङ्क्षसह भाटी
26 साल के रविन्द्रसिंह भाटी शिव के विधायक है। जोधपुर युनिवसिज़्टी की राजनीति में करीब पांच साल पहले आए तो वे ठेट देसी मारवाड़ी बोलने लगे। युनिवसिज़्टी के यूथ को उनकी यह बोली ऐसी पसंद आई कि उन्हें निदज़्लीय जीताया। रविन्द्र ने इस भाषा को नहीं छोड़ा और देखते ही देखते वे देशभर में अपनी बोली की वजह से यूथ आइकॉन बन गए। 2023 में शिव से निदज़्लीय चुनाव लड़ा और सबसे कम उम्र के विधायक बन गए है। रविन्द्र ने विधानसभा में मारवाड़ी मे ंशपथ ली, हालांकि राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं होने से इसे मान्य न हीं माना गया। रविन्द्र के मारवाड़ी के डॉयलॉग लांठा हां, मोटियार हां, मजबूत रह्या और कई वाक्य अब यूथ के लिए पसंदीदा हो गए है।
अनवर खां-पद्मश्री
जैसलमेर के गांव बहिया के रहने वाले कलाकार अनवर खां ने अपनी बोली के गीत गाने और उनको ही आवाज दी। मारवाड़ी गीतों, हरजस, सूफी अंदाज के भजन और लोकगीतों केा गाते-गाते अनवर ने करीब 75 से अधिक देशों की यात्रा कर ली है। अंगे्रजों और अन्य विलायती लोगों केे बीच भी जब साज और आवाज के साथ अनवर केसरिया बालम आवोनी पधारो म्हारे देस और लाल मेरी पथ रखियो बला झूले लालण या फिर पूरी अजोध्या राजा दशरथ घर रामचंद्र अवतार लियो गाते है तो लोग झूम उठते हे। अनवर को इसी बोली ने पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करवाया है। अनवर कहते है, म्है आखी जिंदगी आपरो पेरवास अर बोली नी छोड़ी।
रूमादेवी: नारीशक्ति
ठेट बाड़मेर के गांवों में रहने वाली सामान्य परिवार की महिला। पहनावा भी घाघरा- ओढऩा और वो भी देसी रंग। मारवाड़ी बोलना और मारवाड़ी के भजन-गीत महिलाओं के बीच पहुंचकर गाना। कशीदकारी के हुनर को सीखी और अपनी जैसी देसी महिलाओं को जोड़कर कशीदाकारी को प्रोत्साहित किया। रूमादेवी को इसी मारवाड़ी बोली और अंदाज ने कुछ खास बनाया और अब वह नारीशक्ति पुरस्कार प्राप्त कर देशभर में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण बनी है।
टीवी मंच पर डिमांड
बाड़मेर-जैसलमेर के लोक कलाकारों के लिए तो देसी बोली और पहनावा अब उनकी तरक्की की राह खोल रहा है। गायकी के टीवी कंपीटिशन में अब यह जरूरत बन गई है कि बाड़मेर जैसलमेर के लोक कलाकारों को बुलाकर उनको शामिल किया जाए। मामेखां, स्वरूप, मोतीखां सहित दजज़्नों कलाकार इन मंच के जरिए फेम बने है।
Source: Barmer News