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गजेंद्र सिंह दहिया

Rajasthan News : सिस्टिक फाइब्रोसिस जन्मजात दुर्लभ बीमारी है, जिसमें बच्चों को बार-बार निमोनिया होता है। इस बीमारी की जांच राजस्थान में केवल एम्स जोधपुर में हो रही है। बच्चे के पसीने की जांच में इस बीमारी के बारे में पता चलता है। अधिकांश बच्चों के डॉक्टर्स (पीडियाट्रिशियन) को भी इस बीमारी के बारे में पता नहीं है, जिसकी वजह से इस बीमारी की पहचान नहीं हो पा रही है। अब तक एम्स में सिस्टिक फाइब्रोसिस से पीड़ित 45 बच्चे रजिस्टर्ड हुए हैं, जिसमें से 5 बच्चों की मौत हो चुकी है। वर्तमान में 40 बच्चों का इलाज चल रहा है।

सिस्टिक फाइब्रोसिस क्या है
इस बीमारी में श्वास नली से बलगम बाहर नहीं आ पाता है। बार-बार निमोनिया होता है। सांस फूलती है। फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। अग्नाशय ग्रंथि बंद होने से पाचन क्रिया अनियमित हो जाती है। भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता नहीं है। अमरीका व यूरोप में यह सामान्य बीमारी है। दवाइयां भी केवल वहीं उपलब्ध हैं। दवाइयां महंगी हैं। हर महीने 15 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। ऐसे मरीज की अधिकतम उम्र 58 साल है, लेकिन भारत में जागरूकता के अभाव व दवाइयां नहीं होने से मरीज 20-30 साल ही जिंदा रहता है।

कैसे होती है जांच
पसीने की जांच करने वाली मशीन एम्स दिल्ली के डॉ. सुशील काबरा ने तैयार की है, जो एम्स जोधपुर में भी है। इसमें बच्चों के शरीर पर इलेक्ट्रोड लगा पसीना पैदा करते हैं। फिल्टर पेपर में पसीना एकत्र किया जाता है। पसीने में क्लोराइड की मात्रा 60 मिली इक्वीलेंट प्रति लीटर से अधिक है तो उसे सिस्टिक फाइब्रोसिस बीमारी है।

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Source: Jodhpur

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