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दिलीप दवे

बाड़मेर. जिले के समदड़ी कस्बे में होली के दूसरे दिन हर घर से हाथ में आटा-दाल लिए लोग समाज भवन बगेची आते हैं और गोठ कर पर्व का उत्साह मनाते हैं। नियम भी अजब है पर सदस्य दो सौ ग्राम आटा और साथ में थोड़ी। घी खाना है तो घर से लाना होगा। भोजन में बनती है दाल-बाटी और बनाने वाले समाज के ही लोग। फिर जिसने जितना आटा दिया, उसी हिसाब से बनी बनाई बाटी और दाल मिल जाती है। इसके बाद सभी लोग पक्ति (पंगत) में बैठकर आनंद उठाते हैं गोठ का जिसका नाम है घौंचा गोठ। यह परम्परा सालों से चली आ रही है। समाज को पूरे साल इंतजार रहता है तो सिर्फ घौंचा गोठ का। जो उनकी एकता के साथ पर्व का उल्लास दुगुना कर देती है।
श्रीमाली समाज वैदिक, धर्मशास्त्रों का ज्ञाता है। गांवों में सालों से यज्ञ, हवन, शादी-नामकरण आदि कार्य सम्पन्न करवाता है। समाज के लोगों को गुरु माना जाता है। बाड़मेर जिले के कई गांवों में समाज के परिवार रहते हैं, लेकिन समदड़ी में करीब दो सौ परिवार बसते हैं। ये परिवार पूरे साल होली का इंतजार करते हैं, क्योंकि इस दौरान वे सामूहिक घौंचा गोठ जो होती है। यह गोठ अपने आप में अनूठी है। क्योंकि हर परिवार अपने घर से खाने की सामग्री लाता है। इसका भी तय माप है। अपने घर के सदस्य की तादाद के अनुसार दो सौ ग्राम आटा और थोड़ी मात्रा में दाल लेकर आते हैं। यह सभी समाज बगेची में एकत्रित करते हैं। इसके बाद आटा को गूंद कर बाटा तैयार होती है तो बड़ी देगची में दाल रखी जाती है। जब बनकर तैयार होती है तो जिसने जितना आटा दिया उसी अनुपात में बाटी दे जाती है और साथ ही दाल। समाज के लोग पंगत में बैठकर खाना शुरू करते हैं। इस दौरान घी की व्यवस्था संबंधित परिवार को पहले तो घर से करनी होती थी, लेकिन अब बगेची में भी कर दी जाती है। एेसे में हंसी-खुशी के साथ घौंचा गोठ सम्पन्न हो जाती है।

घर ले जाने पर घी नहीं- कई जने जो घर ले जाकर दाल-बाटी खाना चाहते हैं, वे ले जाते हैं, लेकिन उनको दाल-बाटी ही मिलती है, घी नहीं।

Source: Barmer News

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