बाड़मेर. होली के रंगों के संग ही थार में गेर नृत्य की रम्मक-झम्मक शुरू हो गई है जो शीतला सप्तमी तक रहेगी। पारंपरिक नृत्य में ग्रामीण विशेष वेशभूषा में सात दिन तक गांव-गांव में लोग गेर नृत्य में शामिल होंगे। धुलण्डी को सनावड़ा गांव में बड़े गेर मेले का आयोजन हुआ।
क्या है गेर नृत्य
यह पारंपरिक नृत्य है जिसमें गेरिए(नृतक) विशेष आंगी-बांगी कुर्ता पहनते हैं। इसके साथ पांवों में घुंघरू। साफा और लगभगर पारंपरिक दूल्हे के वेश में नजर आते हैं।
इसके बाद दो डण्डों के साथ गोल घुमाव के साथ घेरे में नृत्य करते हैं। इसमें डांडियों की टकराहट, ढोल की ढंकार, थाली की टंकार का सम्मिश्रण होने के साथ ही फाग के गीत की लय एेसे जुड़ती है कि संगीत का जादू व मस्ती माहौल पर छा जाती है।
यहां होंगे बडे़ मेले
बाड़मेर के निकट सनावड़ा में होली के दूसरे दिन ही धुलण्डी को गेर मेला हुआ है। आगामी दिनों में लाखेटा, कनाना, खण्डप, सिवाना में बड़े मेले होंगे।
कोटड़ी, समदड़ी, जसोल, काठाड़ी, पारलू, मोकलसर सहित दर्जनों गांवों में गेर नृतक शाम को नृत्य करने लगे हैं। शीतला सप्तमी के बड़े मेलों में ये गेर दल अपनी प्रस्तुतियां देते हैं।
देश- विदेश में रम्मक झम्मक
गेर की रम्मक झम्मक देश-विदेश तक पहुंची है। जसोल का गेर दल बड़े आयोजना में हिस्सेदार रहा है। पारंपरिक गेर नृत्य को लेकर सरकार के लोक कला व संस्कृति विभाग को विशेष पैकेज देना चाहिए।साथ ही गेरियों के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की जाए तो ये कलाएं जिंदा रहेगी।
– केवलराम माली, जसोल गेर नृतक
Source: Barmer News