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दिलीप दवे
बाड़मेर. सीमावर्ती जिला बाड़मेर पर्यावरण के प्रति जागरूक रहा है। यहीं कारण है कि यहां पेड़-पौधों की रक्षा के लिए ओरण-गोचर आरक्षित है तो वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए आखेट निषेध क्षेत्र है। जगह-जगह पहाड़ और आसपास सैकड़ों पेड़ पीढि़यों की पर्यावरण के साथ रिश्ते की कहानी बयां करते हैं, लेकिन बदलते परिवेश में यहां की पीढ़ी पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भूलती नजर आ रही है। अब यहां की हवा में जगह घुल रहा है तो पहाड़ अवैध खनन की भेंट चढ़ रहे हैं। अत्यधिक कमाई के लालच में जमीन में भी रसायन मिल रहा है। रही-सही कसर ओरण-गोचर पर ध्यान नहीं देने और पेड़-पौधों की कटाई से पूरी हो रही है।

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पृथ्वी की रक्षा के लिए पर्यावरण और प्रकृति के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए है। यह अभियान सकारात्मक पर्यावरणीय कार्रवाइयां करने के लिए स्थापित किया गया था।

इसका उत्सव हमें अपने स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ पर्यावरण के महत्व को समझने के साथ-साथ दुनिया भर में सतत और पर्यावरण के अनुकूल विकास के सक्रिय एजेंट होने के लिए जनता को सशक्त बनाने में मदद करता है। यहीं कारण है कि पृथ्वी और उनके पर्यावरण के प्रति अपनी देखभाल और समर्थन दिखाने के लिए इसे लोकप्रिय रूप से पीपल्स डे कहा जा रहा है। पर्यावरण की रक्षा के तरीके जानना वास्तव में महत्वपूर्ण है। हम जो खाद्य पदार्थ खाते हैं, जो हवा हम सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो जलवायु हमारे ग्रह को रहने योग्य बनाती है वह सब प्रकृति से आती है। एेसे में पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन बाड़मेर को लेकर कहा जाए तो यहां पिछले एक दशक से बहुत बदलाव देखने को मिले हैं।
इसने हमारे प्राकृतिक औद्योगिक और सामाजिक वातावरण को बहुत नुकसान पहुचाया है। इसकी बदौलत बाड़मेर जिला जो वातावरण प्रेमी था अब धीरे-धीरे वातावरण नुकसान पहुचाने वाला होता जा रहा है। पिछले एक दशक से खनन की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। अवैध खननकर्ताओं ने धरतीमां की गोद को तो खोखला किया ही है बड़े-बड़े पहाड़ों को भी जमीदोज कर दिया। इधर, बढ़ते औद्योगिक विकास के चलते कारखानों से निकलने वाले धुआं ने बालोतरा, जसोल और आसपास के गांवों की हवा में जहर घोल रखा है। रसायनिक पानी को अवैध रूप से लूनी नदी में छोडऩे से यह भी मैली हो चुकी है।
जैविक धरा में रसासनिक का उपयोग- बाड़मेर में जहां खरीफ की बुवाई में जैविक खेती हो रही है तो रबी की बुवाई में रसायनिक खाद का उपयोग। स्थिति यह है कि तय मापदंड से पांच गुना ज्यादा रसायनिक खाद का उपयोग होने से धरती बंजर होने की ओर है। वहीं, सिंचित खेती में पानी का अत्यधिक उपयोग तो घरों में पानी का दुरुपयोग भी हो रहा है। जिस बाड़मेर में पुरखे पानी को घी से कीमती मानते थे, वहां पानी व्यर्थ बह रहा है। वर्तमान में पानी का जल स्तर जिले में तीन सौ फीट की गहराई से नीचे जाकर पांच फीट तक पहुंच गया है।
ओरण के साथ खत्म हो रही वनस्पति- प्रदेश में 19860 वर्ग किलोमीटर में ओरण है जिसमें से बाड़मेर में 2927.86 वर्ग किलोमीटर में ओरण है। फोगेरा, बालेबा, रेडाना (शिव) और ढोक (चौहटन) की ओरण आज भी लोगों को लुभाती है, लेकिन अन्य गांवों में ओरण-गोचर पर हो रहे कब्जे के चलते पेड़-पौधे विलुप्त हो रहे हैं। ओरण-गोचर और बाड़मेर की धरा पर मिलने वाले अश्वगंधा, संतर, गुगल, बेकरिया, मंजल, हाडा आदि वनस्पति है रफ्ता-रफ्ता कम हो रही है।
पर्यावरण के प्रति रहें सचेत- जिले में पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। रसायनिक खादों का प्रयोग खेती के लिए नुकसानदायक है। ओरण-गोचर बचाने के लिए वन्य क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत है। पर्यावरण दिवस पर हम बाड़मेर को पर्यावरण प्रेमी क्षेत्र बनाने की पहल करें।- प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक
यह हो सकते हैं काम
साफ-सफाई की योजना बनाएं
पानी का कम उपयोग करें।
बिजली का उपयोग सिमित करें
खनन कम करें
रसायनिक खाद का उपयोग जरूरत के अनुसार करें

पौधे लगा कर इतिश्री नही करें इनको पनपाएं भी

ओरण-गोचर को बचाएं

जल, प्रकाश, भूमि, वायु और प्रकृति में रहने वाले सभी जीवों की रक्षा करें

र्षा जल संरक्षण ज्यादा से ज्यादा

ओरण गोचर को चरागाह के रूप में विकसित करना

घरो में गमलो या खुली जगह पर पौधे लगाएं

पुन: काम में आने वाली वस्तुओं का ज्यादा से ज्यादा काम में लेना
फाइल फोटों काम में लिए जा सकते हैं।

Source: Barmer News

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