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बाड़मेर. देश में कोरोना को लेकर लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा असर देश के मजदूरों पर पड़ा है जिनका रोजगार बंद होने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। बाहरी राज्यों में रोजगार न होने की वजह से वे अपने घर वापस लौट आए हैं उन प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए भारत सरकार की ओर से गरीब कल्याण रोजगार अभियान कार्यक्रम शुरू किया।

इस अभियान के जरिये अपने घर आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार के अवसर प्रदान कर आजीविका को सुधारा जाएगा। यह बात केवीके गुड़ामालानी प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने जालीखेड़ा गांव में पंचम प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि इस येाजना केे अंतर्गत केन्द्र की ओर से दक्षता आधारित विभिन्न विषयों जैसे डेयरी, बकरीपालन, नर्सरी प्रबंधन, मुर्गीपालन, मूल्य संवद्र्धन, एफपीओ, आय जनित गतिविधियों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. लखमा राम चौधरी ने प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के अवसर कौशल प्रशिक्षण के आधार पर कैसे प्रदान किए जाए इसके बारे में जानकारी दी। डॉ. हरि दयाल चौधरी ने नर्सरी प्रबंधन एवं पौध संरक्षण के बारे में जानकारी दी। गंगाराम माली ने प्रवासी मजदूरों को मृदा की सरंचना एवं जल परीक्षण की तकनीक को विस्तारपूर्वक समझाया एवं जल एवं मृदा नमूना लेने की जानकारी प्रदान की।

मुर्गीपालन व्यवसाय अपनाने से रुक सकता है पलायन

बाड़मेर. बाड़मेर जिले में हर तीसरे साल अकाल की स्थिति बन जाती है, जिसके कारण यहां के युवा वर्ग को पड़ोसी राज्यों में मजदूरी पर जाना पड़ता है। आज की स्थिति में कोरोना के कारण कई मजदूर खाली बैठे हैं, जिनके पास कुछ भी व्यवसाय नहीं है, इनको जल्दी व अधिक आय के व्यवसाय से जोडऩा ही एक मात्र उपाय है। मुर्गीपालन ऐसा व्यवसाय है जिससे युवाओं को बाहर जाने से रोका जा सके एवं उनको आमदनी के साथ जोड़ा जाए। कृषि विज्ञान केन्द्र दांता के विशेषज्ञों ने देरासर में मुर्गी फार्म का भ्रमण कर आमजन को मुर्गी पालन की जानकारी देते हुए यह बात कही। केन्द्र प्रभारी श्यामदास ने बताया कि देरासर में एक महिला मुर्गीपालन कर रही है,जिसने मुर्गी पालन का प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार शुरू किया।

श्यामदास ने कहा कि पहले लोग मुर्गीपालन में कम रुचि ले रहे थे लेकिन अब लोागें का रूझान बढ़ रहा है। केन्द्र के पशुपालन विषेशज्ञ बी.एल.डांगी ने बताया कि महिला को प्रतापधन नस्ल के चूजे दिए गए थे जिनकी वृद्धि अच्छी है और अण्डा देना प्रारम्भ कर दिया है। डांगी ने बताया कि यह नस्ल क्षेत्र में आसानी से पाली जा सकती है और इसको गर्मी में भी कोई परेशानी नहीं होती है

। इस नस्ल में बीमारियां नहीं के बराबर आती है और अण्डों का उत्पादन देसी मुर्गी से पांच गुना अधिक है जिससे लोगों का इस ओर रूझान बढ़ रहा है।

Source: Barmer News

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