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बाड़मेर. रेगिस्तान की बेटियां न केवल ख्वाब देखने लगी है सपनों की छलांग भी इतनी ऊंचाई पर लेने लगी है जो कई बार अचरज करने वाले होते है। कल्पना कीजिए धोरीमन्ना के सब्जीविक्रेता की बेटी जिसने अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई इस छोटे कस्बे में की वो न केवल बारहवीं बाद दक्षिणी कोरिया की भाषा सीखी बल्कि इस दर्जे की सीखी कि अब उसे कोरिया ने स्कॉलरशिप के साथ शोध के लिए आमंत्रण दिया है और हर साल 14 हजार डॉलर वजीफा मिलेगा।

पेम्पों पत्रिका को बताती है कि उसने आठवीं तक की पढ़ाई आदर्श विद्या मंदिर और इसके बाद गांव के ही एक विद्यालय से की। सब्जी विक्रेता पिता भीखाराम प्रजापत ने उसे एक ही पाठ पढ़ाया कि पढ़ो। बारहवीं में 80 प्रतिशत हासिल करने के बाद पिता ने कहा आईएएस बनने का सपना ध्यान में रखो। पेम्पों ने इसके लिए दिल्ली युनिवर्सिटी और झारखण्ड युनिवर्सिटी के लिए आवेदन किया। चुरु के एक मार्गदर्शक शिक्षक ने इसके लिए कहा। झारखण्ड युनिवर्सिटी में दाखिला तो हो रहा था लेकिन यहां तीसरी भाषा के रूप में दक्षिणी कोरिया(कुरियन) भी लेनी थी। पेम्पों जो हिन्दी माध्यम से पढ़ी और मारवाड़ी घर की बोलचाल रही उसके लिए यह चुनौती थी लेकिन उसने सहज स्वीकार कर लिया। पहले ही साल में उसने भाषा सीख ली और अपनी स्नातक उत्तीर्ण कर ली।

कूरियन के साथ जॉब
स्नातक पूर्ण करने के बाद पेम्पों को आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय जाना था लेकिन वह कहती है कि पिता सब्जी विक्रेता है और परिवार के लिए संबल बनने के लिहाज से उसने जॉब करने की ठानी और आगे की पढ़ाई जारी रखने का तय किया। उसको चैन्नई में एक कंपनी में काम मिला जहां उसका सालाना छह लाख का पैकेज है। यहां भी उसको कूरियन भाषा के साथ काम करना है। ऐसे में उसकी दिलचस्पी बढ़ती गई।

सोचा कि अब तो कोरिया जाऊंगी
कूरियन भाषा से लगाव के साथ ही उसने तय किया कि जिस भाषा पर उसकी कमांड है तो वह दक्षिणी कोरिया भी तो जा सकती है। फिर क्या, विभिन्न माध्यमों से स्कॉलरशिप के लिए प्रयास प्रारंभ किए। दो बार इसके लिए परीक्षा दी और वह अब सफल हो गई है। कोरिया की ईवाह वूमेन युनिवर्सिटी में चयन हुआ है। उसको दक्षिणी कोरिया में पढ़ाई के साथ ही 14 हजार डॉलर प्रतिवर्ष का वजीफा भी मिलेगा।

ग्लोबन कोरिया स्कॉलरशिप प्राप्त करने के बाद पेम्पों अब खुश है कि उसने जो सपना संजोया वो पूरा हो रहा है।आईएएस बनने का सपनापेम्पों का सपना आईएएस बनना है। वह कोरिया में रहते हुए भी अपने ध्येय को ध्यान में रखेगी। वह कहती है कि आगे उसको और अच्छे विकल्प मिले तो वह उन पर भी काम करेगी। पिता भीखाराम कहते है कि बेटी उसके सपने को साकार कर रही है।

Source: Barmer News

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