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जोधपुर. सर्दियों में यूरोप से थार के पांच जिलों जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और नागौर आने वाले गिद्धों की संख्या में कमी आई है। हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और काला गिद्ध पहले की संख्या में 70 प्रतिशत रह गए हैं। अक्टूबर से लेकर नवम्बर तक इन तीन प्रजातियों के करीब 5 हजार गिद्ध थार में आते हैं। जोधपुर में खाना नहीं मिलने से गिद्ध अब पूर्णतया जैसलमेर और बीकानेर की तरफ शिफ्ट हो गए हैं।

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के प्राणी शास्त्र विभाग की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार वर्ष 2006 से थार के अधिकांश हिस्सों में गिद्ध की लगभग सभी प्रजातियों में गिरावट आई है। केवल जैसलमेर में गिद्ध ने अपनी संख्या को कायम करके रखा है। यहां भादरिया, धोलिया, सम के इलाकों में गिद्धों के झुण्ड देखे जा सकते हैं। भादरिया में बड़ी गौ शाला होने के कारण गिद्ध को यहां पर्याप्त भोजन मिल जाता है। जोधपुर में खाना नहीं मिलने से बड़े गिद्ध गायब हो गए हैं। इसकी तुलना में छोटे गिद्ध यानी इजिप्शियन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जोधपुर में नहीं मिलता मांस
केरु में कराकस प्लांट होने से मृत जानवरों की आहारलाल, खुर और सिर का भाग ही बाहर फैंका जाता है, शेष भाग प्लांट में चला जाता है। अधिकांश गायों की मौत प्लास्टिक खाने से होती है। उनकी आहारनाल में 80 प्रतिशत प्लास्टिक भरा होता है। बड़े गिद्ध लीवर, फैंफड़े, किडनी, दिल जैसे बड़े हिस्से खाते हैं। भोजन कम होने के अलावा यहां खनन कार्य में विस्फोटकों के अधिक प्रयोग से गिद्ध यहां नहीं ठहरते हैं।

इजिप्शियन गिद्ध बढ़ा
बड़े गिद्ध कम होने से जोधपुर में गिद्ध की स्थानीय प्रजाति इजिप्शियन में इजाफा हुआ है। इनको खाने के लिए कम भोजन चाहिए। साथ ही ये बचे-खुचे से भी काम चला लेते हैं। जोधपुर में इनकी संख्या 2 हजार पहुंच गई है।

थार रेगिस्तान की धूप में सनबाथ करते हैं गिद्ध
जेएनवीयू के प्राणी शास्त्र विभाग के डॉ आरएस सारण पिछले 14 साल से गिद्ध पर काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि थार में तीखी धूप होती है जिसमें गिद्ध सनबाथ लेते हैं। चिलचिलाती धूप में दोपहर में वे भोजन के लिए उठते हैं। इसकी कारण इनकी संख्या जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर में होती है।

Source: Jodhpur

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