दिलीप दवे
बाड़मेर. सीमावर्ती बाड़मेर जिले में महिलाएं लोगों के सामने मिसाल बन कर आ रही है। कभी घूंघट की आड में चूल्हा-चौका संभालने वाली नारीशक्ति अब खुद सशक्तीकरण का उदाहरण है तो घर बैठी महिलाओं को रोजगार से जोड़ सैकड़ों परिवारों का जीवन स्तर ऊंचा उठा रही है। सिणधरी की भीखीदेवी नौ सौ महिलाओं के लिए फरिश्ते से कम नहीं है। उन्होंने मात्र पांच साल में ही खेतीकिसानी से जुड़ी इन महिलाओं को आर्थिक संबल दिया है। वहीं, देशाांतरीनाडी नया नगर की सजनीदेवी मात्र तीस साल की उम्र में बागवानी अपना ११० पौधे तैयार कर परिवार के लिए कमाऊपूत की भूमिका निभा रही है।
पीराणी मुसलमानों की ढाणी निवासी नगर जुबैदाबानो ने २१ साल की उम्र में बकरीपालन का प्रशिक्षण प्राप्त कर आधुनिक तकनीक के साथ रोजगार प्राप्त करना का जरिया अपनाया है। आसपास के गांवों की महिलाएं भी उनको देख आगे बढऩे का सपना देखने लगी हैं। बाड़मेर जिले का मुख्य व्यवसाय खेती है। जिले में करीब साढ़े चार लाख किसान खेतीबाड़ी करते हैं।
यहां खेतीबाड़ी व पशुपालन का कार्य पुरुष किसानों से ज्यादा महिला किसानों पर निर्भर है। बावजूद इसके महिलाएं अभी भी खुद स्वावलम्बी बन कर आगे बढ़ती नजर नहीं आती, लेकिन अब सोच में बदलाव नजर आ रहा है जिसके चलते कई महिला किसान खेतीबाड़ी खुद संभाल कर परिवार को आर्थिक संबल दे रही है। सरकार की विभिन्न महिला सशक्तीकरण योजनाओं से भी महिला किसानों को फायदा मिल रहा है, जिससे वे अधिक से अधिक आगे आ रही है।जिले में कुछ एेसी महिला किसान अन्य महिलाओं के लिए मिसाल बन रही है।
नौ सौ घरों में रोजगार का जरिया भीखीदेवी– सिणधरी निवासी भीखीदेवी पांच साल पहले आमगृहिणी की भूमिका निभा रही थी। इस दौरान कृषि विभाग की ओर से दिए जा रहे प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया तो उसकी जिंदगी बदल गई। उसको योजनाओं की जानकारी मिली तो महिला किसान संगठन बनाया। महिलाओं ने उसे अध्यक्ष बनाया तो वह और सक्रिय हो गई और महिलाओं को संगठन से जोड़ कर खेतीकिसानी से जुड़े लाभों की जानकारी देने लगी। महिलाओं को भी घर बैठे काम मिला तो उन्होंने रुचि ली और देखते ही देखते पांच साल में सिणधरी व पाटोदी ब्लॉक की नौ सौ महिलाएं संगठन से जुड़ गई।
भीखीदेवी ने इन महिलाओं को जैविक खेती, बागवानी, किचन गार्डन, अजोला पिट, जीवामृत और कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण देकर आगे बढऩे का अवसर दिया। अब दोनों ब्लॉक के कई गांवों में महिलाएं अपने बूते उक्त कार्य कर परिवार को संबल दे रही हैं।
सजनी की मेहनत से संवर रही बगिया- देशांतरीनाडी नया नगर निवासी सजनीदेवी मात्र तीस वर्ष की है। कुछ साल पहले गुडामालानी में महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा था तो वे भी चली गई। वहां उन्होंने जैविक खेती के साथ बागवानी से आय कैसे प्राप्त करे इसकी जानकारी हुई। घर आई तो परिजनों से मिलकर बगीचा लगाने की बात कही और ११० पौधे लगाए जिनको उन्होंने खुद संभाला और आज वे पेड़ बन कर परिवार के आय का जरिया बन रहे हैं। वहीं, पशुओं के गोबर को एकत्रित कर जैविक खाद तैयार करती है जिसको बाजार में बेच अच्छा मुनाफा कमा रही है। बकरीपालन से परिवार का पालन-पोषण- पीराणी मुसलमानों की ढाणी नगर निवासी जुबैदाबानो ने २१ साल की उम्र में बकरीपालन को अपनाया। उन्नत नस्ल की बकरियां लाकर वे उनकी देखभाल कर रही है। पिछले कुछ माह से वे अच्छा मुनाफा कमा रही है। वे न केवल खुद स्वालम्बी बनी है परिवार के लिए भी कमाऊपूत की भूमिका में है। उनकी मेहतन व लग्न देख आसपास की महिलाएं भी बकरीपालन को व्यवसाय के रूप में अपना रही है।
महिला सशक्तीकरण की और बाड़मेर के कदम- बाड़मेर जहां महिलाएं घूंघट की आड़ में रहती है, वहां कुछ महिला किसानों ने खेती व पशुपालन की नवीन तकनीक अपना कर नवाचार किया है। आज वे समाज के लिए मिसाल है तो परिवार के लोगों के साथ कंधा से कंधा मिला आर्थिक सहयोग कर रही हैं। उनको देख और भी महिलाएं आगे आएंगी और बाड़मेर महिला सशक्तीकरण की ओर कदम बढ़ाएगा।– डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक केवीके गुड़ामालानी
Source: Barmer News