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जिंदगी जरूरी है……
टिप्पणी
रतन दवे
परिवार में किसी के कोरोना पॉजीटिव आने के बाद उसके हालात क्या होते है, महसूस किया है। डर,न चाहते हुए भी बढ़ता है। बीमारी का भय, खाता है कि अब फिर नेगेटिव कब आएंगे? कहीं एक से दूसरे में और फिर तीसरे-चौथे में आ गया तो क्या होगा? परिवार के बुजुर्ग का ख्याल कैसे रखना होगा? आस-पड़ौस से भी बात करने से कट जाना है। घर में कैद होना है। वास्तव में यह बीमारी जितना शरीर को दर्द नहीं देती है उतना मन को व्यथित,विचलित और बीमार कर देती है। बावजूद इसके हम इसको लेकर लापरवाही की हद को अभी तक नहीं भूल रहे है। कोरोना का दूसरा दौर शुरू हुआ है। ऐसे दौर में जब अब स्वच्छंद हो चुके है। हमें विवाह-समारोह की फिक्र इतनी हो गई है कि हमने सैकड़ों लोगों को बुलाना अपनी प्रतिष्ठा बना लिया है और निमंत्रण भी दे चुके है। कोरोना में जरूरी है कि गैरजरूरी लोगों को नहीं बुलाएं लेकिन ऐसा नहीं करने की ठान ली है। जो समारोह अभी न हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता,उनको भी करने की उतावल है। ये उतावल इस दौर में कैसे ठीक है। जरूरी है कि संयम को फिर से जीवन में उतार लें। जरूरी है कि शादी-समारोह हों लेकिन सादगी क्या बुरी है? वैसे भी हम जीवन में बड़ आदर्श और ध्येय वाक्य लेकर कहते है कि हमें दिखावा पसंद नहीं है तो फिर ये हौड़ क्यों मची है? सेनेटाइजर, मास्क और सोशल डिस्टेसिंग के मूलमंत्र को भूलकर भीड़ को बुलाने और उसका हिस्सा बनना कौनसी समझदारी है। जिंदगी के लिए जो काम जरूरी है उनको कीजिए लेकिन नियमों को तोड़कर अपने और दूसरों के जीवन को संकट में डालने की कहां जरूरत है। एक उदाहरण से इस कोरोना की भयावहता को समझा जा सकता है। एक साथी के कोरोना की जांच करवाई,उसको पॉजीटिव आया। उसका तर्क था कि जब मेरे सबकुछ सही है तो पॉजीटिव कैसे आया? यह गलत जांच है और उसने हजार तर्क दिए। संयुक्त परिवार के इस व्यक्ति के बाद उसके भाई को पॉजीटिव आया और दाखिल करवाना पड़ा। फिर परिवार के बाकि सदस्यों को? कोरोना ने तीन-चार दिन में पिता को भी चपेट में ले लिया और वे बुजुर्ग इससे जिंदगी की जंग हार गए। पूरा परिवार पॉजीटिव और परिवार के मुखिया के निधन बाद सबका उनके अंतिम संस्कार तक के लिए दूर होना कितना दर्द दिया होगा? परिवार के एक जवान बेटे की मौत के बाद मां विलाप करने लगी तो चिकित्सकों ने उसे बेटे से नहीं मिलने दिया,उसको कोरोंटाइन करना पड़ा। कई परिवार के सदस्य एक दूसरे से अलग-अलग है और फिक्र इस बात की करते है कि उसके ठीक है, वो तो ज्यादा नहीं खांस रहा है। पापा कैसे है, मां के ठीक है..। समझिए कि जिंदगी के ये 14-15 दिन कितने भारी होते होंगे। दो सगे भाईयो की अर्थी तीन दिन में उठने के समाचार ने परिवार को कितना तोड़ा होगा,और कंधा देने वाले भी नहीं आए कि कोरोना है। ये दौर बहुत मुश्किल है। हम मार्च माह से लगातार लड़ रहे है। यह लड़ाई तब तक है जब तक दवाई नहीं है,लेकिन हमने इस लड़ाई को लेकर बेफिक्री शुरू कर दी है। फेसबुक और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर गौर कीजिए…कितने जानने वालों के कोरोना से जंग हारने के फोटो रोज देखे है,ऐस प्रतिदिन हो रहा है न…। सच मानिए..कोरोना को लेकर अभी भी हमें बहुत सावचेत रहने की जरूरत है। दूसरे दौर को हराइए और आगे बढि़ए…अनुशासित रहें और रखें…क्योंकि जिंदगी जरूरी है….।

Source: Barmer News

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