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रतन दवे ्र
बाड़मेर पत्रिका.
यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है कि एक रॉबिनहुड डाकू और फौज का ब्रिगेडियर मिलकर युद्ध लड़े। युद्ध भी कोई ऐसा वैसा नहीं था भारत-पाकिस्तान की लड़ाई और 100 किमी अंदर तक जाकर पाकिस्तान की रेजिंमेंट को धूल चटाते हुए दोनों भारत की जीत का झण्डा गाड़ आए। बिग्रेडियर भवानीसिंह को युद्ध उपरांत महावीर चक्र और बलवंतसिंह को सम्मानपूर्वक दो हथियार सेना ने दिए।
भारत-पाक के 1971 के युद्ध में बाड़मेर की कमान सेना के ब्रिगेडियर भवानीसिंह के पास थी। ब्रिगेडियर भवानीसिंह को रेगिस्तान के इस रास्ते से पाकिस्तान को फतेह करना था और उसके लिए उनको रास्ते के ऐसे जानकार की जरूरत थी जो चप्पे-चप्पे से वाकिफ हों। उन दिनों पश्चिमी सीमा पर डाकू बलवंतसिंह बाखासर के चर्चे थे। डाकू बलवंतसिंह को पाकिस्तान में भी हर कोई जानता था। ब्रिगेडियर भवानीसिंह बाखासर पहुंचे।
देश के लडऩे को हुए तैयार
डाकू बलवंतसिंह को भवानीसिंह ने कहा कि पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ दिया है और उन्हें भारतीय सेना का साथ देना होगा। बलवंत तैयार हो गए। उन्हें चार जीप जोंगा और एक बटालियन साथ दे दी और वे पाकिस्तान के छाछरो तक इस बटालियन के साथ भारतीय सेना के साथ लड़ते हुए पहुंच गए।
जीप के साइलेंसर खुलवाकर रेजीमेंट का छकाया
पाक की टैंक रेजीमेंट सामने थी और भारत के पास में सैनिक। बलवंतसिंह ने जीप के साइलेंसर खोलकर ऐसीआवाज की कि पाक सेना को लगा कि सामने भी टैंक ही है। टैंक रेजीमेंट को छकाते हुए फतेह का रास्ता खोला।
महावीर चक्र मिला
ब्रिगेडियर भवानीसिंह को युद्ध समाप्तिा बाद महावीर चक्र मिला। भारत ने बाड़मेर सीमा से करीब 100 किमी अंदर तक पहुंचकर छाछरो चौकी पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान के कई ठिकानों पर भारतीय सेना काबिज हुई। डाकू बलवंतसिंह को दो हथियारों के लाइसेंस दिए गए और उनको सेना ने सम्मान दिया गया।
परिवार को फक्र
बलवंतसिंह के बेटे रतनसिंह बाखासर क्षेत्र के मौजिज लोगों में है। रतनसिंह कहते है कि उन्हें 1971 के युद्ध पर फक्र है। उनके पिता ने क्षेत्र नहीं देश की रक्षा के लिए कार्य किया और सेना आज भी उनके घर पर उनके सम्मान में आती है तो उनके किस्से कहानियों से गौरव होता है।

Source: Barmer News

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