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बाड़मेर पत्रिका.
बाड़मेर की शरणार्थी बस्ती हों या गडरारोड़। बाखासर,चौहटन , रामसर और शिव तहसील के दर्जनों गांव। पाक विस्थापित परिवारों के सैकड़ों घरों में खुशियां चहक रही है लेकिन उनके चेहरे पर तब उदासी छा जाती है जब पाकिस्तान में उनके अपनों की जिंदगी की बात होती है। वे कहते है काश, 1971 में वे भी उनके साथ आ जाते या बाद में। 1971 के युद्ध में 60333 लोग पाकिस्तान छोड़कर भारत आए और इसके बाद यह सिलसिला जारी है। अब तक करीब एक लाख लोग पाक से आए है लेकिन पाकिस्तान जाने वाले एक भी नहीं।
भारत ने यों बिठाया पलकों पर
केस-1
विधायक बने है तरूणराय कागा
1971 के युद्ध में 22 साल का युवा तरूणराय कागा बरसते बमों में पाकिस्तान आया था। तीन दिन तक छुपते छिपाते यहां पहुंचे कागा ने भारत आने के बाद जिंदगी नए सिरे से शुरू की। यहां वे एमपीडब्ल्यू की नौकरी लगे। नौकरी को छोड़कर राजनीति में आए तो उनको चौहटन का विधायक बना दिया गया। 2008 से 2013 तक विधायक रहे कागा 1971 में आए एकमात्र पाक विस्थापित है जो विधायक बने है।
केस-2
बेटा यहां आकर बना आईआरएस
अजीतदान चारण छहो छाछरो पाकिस्तान से आए। 1971 के युद्ध में वे अपने परिवार सहित यहां आकर बसे और उन्होंने अपने परिवार का लालन-पालन सकून के साथ करना शुरू किया। अजीतदान के बेटे सुरेन्द्रसिंह का तीन साल पहले आईआरएस में चयन हुआ और अभी वे मुम्बई में है। सुरेन्द्र कहते है कि हिन्दुस्तान में आकर उनके परिवार ने सबकुछ पाया है।
क्यों छोडऩा चाहते है पाकिस्तान
1. बेटियों को अगवा कर निकाह
हिन्दुओं की बेटियों का पाकिस्तान में अपहरण कर उनसे जबरन निकाह की घटनाएं बढऩे से हिन्दुओं की बेटियां सुरक्षित नहीं। मानवाधिकार संस्था मूवमेंट फॉर सोलिडैरिटी एंड पीस(एमएसपी) की रिपोर्ट में प्रतिवर्ष 1000 हिन्दू, सिक्ख और इसाई लड़कियों का अपहरण करने की रिपोर्ट है।
2. जबरन धर्म परिवर्तन
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान और सिंध में अब लगातार धर्मपरिर्वन कर हिन्दुओं में मेघवाल, भील और गरीब तबके के लोगों धर्म परिर्वतन के लिए बाध्य किया जा रहा है। ऐसा नहीं करने पर अत्याचार और राशन-पानी पर प्रतिबंध के फतवे जारी होने लगे है।
3. मुफलिसी और असुविधाएं
पश्चिमी सीमा से लगते थारपारकर, मिठी, छाछरो सहित अन्य इलाकों के दूरस्थ गांवों में 25 से 50 किमी तक सड़कें नहीं है। अस्पताल, स्कूल और अन्य सुविधाएं भी नहीं है। रोजगार के लिए भी उनके लिए साधन नहीं है।
इसलिए आ रहे है भारत
रिश्तेदारी और सकून
1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान में हालात और बदतर हुए है। भारत आए लोग शरणार्थी बनकर आए लेकिन उनको भारतीय नागरिकता दे दी गई। वे यहां सरकारी नौकरियों, राजनीति और अन्य क्षेत्र में आगे बढ़कर सकून से रह रहे है। पाकिस्तान में मुश्किल में जी रहे सदस्यों को वे लगातार भारत लाकर बसाते रहे है।
बराबरी का दर्जा
पाक विस्थापित परिवार कई धर्म और जाति के है। इनको यहां आने के बाद बराबरी का दर्जा है। जहां बसे है वहां वे अपनी भाषा, भूषा और रीति रिवाज के साथ रहते है। पाकिस्तान में जहां हिन्दूओं को अल्पसंख्यक होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है वहां यहां अल्पसंख्यक भी हर क्षेत्र में एक साथ रह रहे है।
सुरक्षा सबसे बड़ी बात
पाकिस्तान में हिन्दुओं के लिए अब सुरक्षा बड़ा प्रश्न हो चुका है। वहां गरीब तबके के भील-मेघवाल परिवारों के लिए जीना मुहाल हो गया है। इधर भारत में उनके रिश्तेदारों से जानकारी मिलती है कि यहां अनुसूचित जाति-जनजाति और गरीब तबके के लोग अधिकारों के साथ जी रहे है।
तब गाता है हिन्दू का बच्चा-बच्चा- अलबेलो इंडिया तो जाए….
पाकिस्तान में बीते एक साल से एक देसी जुबान का गाना बड़ा जुबान पर है। यह गाना पाकिस्तानी बच्चे,चरवाहे और वहां बसे अल्पसंख्यक(हिन्दूओं) के घर- घर में गूंज रहा है। यह गाना है अलबेलो इंडिया तो जाए..भळे पाछो नी आए…छुक-छुक रेल चढ़े…अलबेलो इंडिया तो जाए…यानि मैं इंडिया जा रहा हूं और वापिस नहीं आऊंगा। छुक-छुक रेल चढ़कर जाऊंगा। गाने के ये बोल इतने दिल छूने वाले है कि वहां बसे हिन्दुओं तड़प को जाहिर कर रहे है।

Source: Barmer News

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