गोकुल चौधरी/मथानिया/जोधपुर. चमकदार लालिमा और अपनी मिठास के कारण देशभर में पहचान बना चुकी मारवाड़ की गाजर ने यहां के किसानों के चेहरे का नूर छीन लिया है। गाजर की बम्पर पैदावार ही किसानों पर भारी पड़ रही है। जैसे ही उपज आनी शुरू हुई भाव औंधे मुंह गिर पड़े। हालत यह है कि गाजर की प्रति किलो लागत १३ से १४ रुपए किलो आ रही है और किसान को दाम आठ से दस रुपए किलो ही मिल पा रहे हैं। किसान भाव बढऩे का इंतजार भी नहीं कर सकता। ऐसे में उसे औने-पौने दामों पर गाजर व्यापारियों-आढ़तियों के हाथों बेचनी पड़ रही है।
जोधपुर के मथानिया-तिंवरी क्षेत्र के रामपुरा भाटियान, सिन्धियों की ढाणी, रामनगर, नेवरा रोड, नेवरा, गोपासरिया, रीनिया, माण्डियाई, खुडियाला, उम्मेदनगर, चौपासनी, राजासनी, बड़ला बासनी, गगाड़ी, कोटवाली व थोब आदि गांवों में सर्वाधिक गाजर उपजती है। यहां की गाजर की महाराष्ट्र, गुजरात, कोलकाता, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा व मध्यप्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मांग रहती है। सर्दी चमकने के साथ ही गाजर अन्य राज्यों में जानी शुरू हो जाती है। इस साल भीषण गर्मी व उमस के कारण अधिकांश खेतों में गाजर की अगेती की फसल तो चौपट हो गई, ऐसे में शुरुआती दिनों में तो ५० से ५५ रुपए किलो के भाव गाजर बिकी, लेकिन बाद में हुई बुवाई से बम्पर पैदावार आते ही भाव तेजी से गिरकर ८ से १० रुपए प्रति किलो ही आ गए।
बिचौलिए तय करते हैं भावगाजर के भाव बिचौलिए व दलाल तय करते हैं। लगभग आधा दर्जन बड़े व्यापारी ही किसानों से इनके जरिए सीधे खेत से माल खरीदते हैं। गुणवत्ता के नाम पर भी भाव तोड़ दिए जाते हैं। कृषक निम्बाराम सियाग के अनुसार गाजर की खुदाई, पैकिंग, ग्रेडिंग, तुलवाई, लोडिंग-अनलोडिंग मिलाकर १३-१४ रूपए लागत मूल्य आता है, लेकिन कम भाव में बिक्री पर मजबूर होना पड़ रहा है। किसान नेता विनोद डागा कहते हैं कि क्षेत्र में स्थानीय मण्डी के अभाव में किसान को कीमत नहीं मिल रही। राज्य सरकार को गाजर उत्पादक किसानों को उचित मूल्य दिलाने में मदद करनी चाहिए।
फैक्ट फाइल
तिंवरी मथानिया में बम्बर पैदावार
४ दर्जन गांवों में होती है खेती
७०-७५ क्विंटल प्रति बीघा बोई गई गाजर
२००-२२५ ट्रक माल रोजाना होता है रवाना
१३ से १५ रुपए प्रति किलो आती है लागत
८ से १० रुपए किलो ही मिल रहे हैं भाव
Source: Jodhpur