अभिषेक बिस्सा/जोधपुर. नम आंखें व थर्राते होंठ। सुबह से जुबां पर बस एक ही बात…‘मेरे तो चलने-फिरने लायक बच्चे हो गए। अब बच्ची के ‘अनचाहे नवजात’ को मैं नहीं रख सकती…इसको तो यहीं अस्पताल छोड़ जाऊंगी।’
यह कहते हुए उस अभागी दुष्कर्म पीडि़ता की अधेड़ मां की आंखें भर आती हैं, जिसे एक दरिंदे की हवस ने ऐसा दर्द दे दिया जिसे वह जिंदगी भर भुला न सकेगी। पीडि़ता की मां के साथ आई एनजीओ की महिलाएं न्याय मिलने का दिलासा देती हैं, लेकिन पांच संतानों की यह मां अपनी माली हालत का दुखड़ा रोते हुए बार-बार सुबक पड़ती है। वह नवजात को अपनाने को तैयार नहीं है।
भोपालगढ़ इलाके के एक गांव की १२ साल से भी छोटी दुष्कर्म पीडि़ता अस्पताल में भर्ती है। दिन भर कभी पुलिस अफसर तो कभी मजिस्ट्रेट आते रहे। पीडि़ता के बयान लिए गए। चिकित्सकों की टीम जच्चा-बच्चा की देखरेख में लगी रही, लेकिन पीडि़ता की मां की आंखें हर किसी से दरिंदगी करने वाले हैवान को कठोर सजा दिलाने की ही मूक गुहार करती नजर आई।
पिता है नहीं, मां करती है मजदूरी
एनजीओ ‘मेरी भावनाएं’ सेवा संस्थान की अध्यक्ष पवन मिश्रा के अनुसार दुष्कर्म पीडि़ता के पिता का दो साल पहले देहांत हो चुका है। मां मजदूरी कर पांच बच्चों का पालन-पोषण करती हंै। मां कोबालिका के गर्भधारण की भनक तक नहीं लगी। बच्ची को यकायक पेट दर्द हुआ तो उसे निकटतम अस्पताल ले जाया गया। शुरुआत में चिकित्सकों ने लीवर में सूजन बताई। फिर ज्यादा दर्द होने पर उसके गर्भवती होने का पता चला। पीडि़ता को यहां लाकर सरकारी अस्पताल भर्ती करवाया गया। जहां बालिका ने पुत्र को जन्म दिया।
‘सजा’ नवजात को भी
दरिंदगी की सजा पीडि़ता के साथ निर्दोष नवजात को भी जन्मदाता से बिछुड़ कर भोगनी पड़ेगी। उसका नाम चाइल्ड वेलफेयर में ऑनलाइन डाटा पर अपलोड किया गया है, ताकि कोई निसंतान दम्पती उसे गोद ले सके।
Source: Jodhpur