जोधपुर. राज्यपाल व कुलाधिपति ने प्रदेश के ११ विश्वविद्यालयों को पत्र भेजकर उनके अधीन शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालयों (बीएड कॉलेज) में शिक्षकों की जानकारी मांगी है। राजभवन ने पूछा है कि बीएड कॉलेजों में कितने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं, जबकि प्रदेश के बीएड कॉलेजों में यह पदनाम ही नहीं है। बीएड कॉलेजों में केवल व्याख्याता होते हैं। प्रदेश में बीकानेर और अजमेर स्थित दो राजकीय बीएड महाविद्यालय तो स्कूली शिक्षा के अधीन आते हैं। एेसे में राज्यपाल सचिवालय को बीएड कॉलेजों के बारे में जानकारी नहीं होना चर्चा का विषय बना हुआ है। साथ ही फॉर्मेट में क्या लिखकर भेजें, यह भी दुविधा का प्रश्न है।
राज्यपाल सचिवालय ने ३० दिसम्बर को राजस्थान विवि जयपुर, जेएनवीयू जोधपुर, मोहनलाल सुखाडि़या विवि उदयपुर, एमडीएस विवि अजमेर, कोटा विवि, महाराजा गंगासिंह विवि बीकानेर, राजऋषि भर्तृहरि मत्स्य विवि अलवर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावटी विवि सीकर, महाराजा सूरजमल बृज विवि भरतपुर, गोविंद गुरु जनजातीय विवि बांसवाड़ा और जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विवि जयपुर को पत्र भेजकर एक निश्चित फॉर्मेट में बीएड कॉलेजों के शिक्षकों की सूचना मांगी है। फार्मेट में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के स्थायीत्व/संविदा, उनकी शैक्षणिक योग्यता, पता, आधार नम्बर और मोबाइल नम्बर मांगे हैं, जबकि प्रदेश के समस्त बीएड कॉलेजों में केवल व्याख्यता ही पदनाम है।
२०१२ में स्कूली शिक्षा से आए उच्च शिक्षा में
प्रदेश के बीएड कॉलेज अप्रेल २०१२ से पहले स्कूली शिक्षा में आते थे। शिक्षकों की लंबी लड़ाई के बाद ये आठ साल पहले ही राज्यपाल की अनुज्ञा से उच्च शिक्षा के अधीन आए, लेकिन अब तक इनके सेवा नियम नहीं बने हैं। इनके शिक्षकों को न ही यूजीसी के शिक्षकों का वेतनमान मिलता है। प्रदेश में संचालित कुल ७ राजकीय बीएड महाविद्यालय में से ५ के बीएड पाठ्यक्रम की मान्यता राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के नियमों की पालना नहीं करने पर निरस्त कर दी गई है। उनके कार्यरत शिक्षक भी व्याख्याता ही कहलाते हैं, जबकि उन्हीं महाविद्यालयों में कार्यरत अन्य सभी विषयों के शिक्षक असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर कहलाते हैं।
‘स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा में आने के बावजूद राज्य सरकार ने इनके सेवा नियम ही नहीं बनाएं। बीएड कॉलेजों में केवल व्याख्याता पदनाम है।’
– डॉ जितेंद्र शर्मा, शिक्षाविद्
Source: Jodhpur