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बाड़मेर. महामारी के 11 महीनों के बाद स्कूल खुले तो स्टेशनरी व्यापारियों को उम्मीद बंधी कि स्टेशनरी की मांग बढ़ेगी, लेकिन जैसी आशा थी उस के अनुरूप खरीददारी नहीं बढ़ी है। बच्चों के लिए स्टेशनरी खरीदने आ रहे हैं, लेकिन बहुत ही जरूरी स्टेशनरी ले जा रहे हैं। अभिभावक बताते है कि कुछ महीने बाकी है, फिर नया सत्र शुरू हो जाएगा और सब कुछ नया लाना पड़ेगा। इसलिए अब कुछ महीनों के लिए खर्च ज्यादा नहीं कर रहे हैं।
कोरोना के बाद जनवरी में बड़ी और फिर छोटी कक्षाओं 6-8 भी शुरू हुई तो स्टेशनरी की डिमांड बढऩे के उम्मीद के चलते व्यापारियों ने खरीददारी भी कर ली। अब जिस उम्मीद में उनकी खरीद हुई वैसी बिक्री नहीं हो रही है। ऐसे में अब मंगवाया गया स्टॉक भी पड़ा है।
कम पेज की कॉपी की डिमांड
अभिभावक कम पेज के कॉपी की मांग रहे हैं। जिसकी कीमत भी कम हो। उनका कहना है कि अब कुछ महीने बचे हैं, इसलिए स्कूल से भी कम काम ही मिलेगा। ऐसे में ज्यादा पेज की कॉपी खरीदने से खर्च अधिक होगा। इसलिए कम पेज की कॉपी से भी काम चल जाएगा। वहीं इसमें भी कुछ सब्जेक्ट के लिए ही कॉपियों की खरीददारी की जा रही है।
सरकारी स्कूलों की किताबों की कमी
मार्केट में सरकारी स्कूलों की पुस्तकों की कमी चल रही है। विक्रेता बताते हैं कि स्थानीय डिपो में पुस्तकें है नहीं। डिमांड के अनुरूप पुस्तकें नहीं मिल रही है। कक्षा 4-12 तक की पुस्तकों में कुछ ही किताबें उपलब्ध हो रही है। इसके चलते भी व्यापार प्रभावित हो रहा है। पुस्तकों का पूरा सेट नहीं होने से अभिभावक भी नहीं खरीदते हैं।
अब कुछ महीनों की पढ़ाई
सत्र के अधिकांश महीने तो निकल गए। अब स्कूल खुले हैं तो पढ़ाई कितनी होगी, यह हम सब जानते है। कुछ महीनों बाद फिर नया सत्र शुरू हो जाएगा। ऐसे में दो-दो बार खर्च कैसे करें। इसलिए स्टेशनरी और पुस्तकें बहुत ही जरूरत वाली ही बच्चों को दिला रहे हैं।
अनिल कुमार, अभिभावक

Source: Barmer News

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