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दिलीप दवे बाड़मेर. कोरोना की मार ने किसानों की अरबों की फसल को घरों में कैद कर दिया है। गुजरात में मंडी बंद है तो प्रदेश में भी कोरोना के चलते हालात खराब है। इसके चलते जहां फसलें बिक नहीं तो दूसरी ओर भाव औंधे मुंह गिरने से वाजिब दाम भी नहीं मिल रहे। जिले में जीरा, अरण्डी और ईसबगोल की करीब बीस अरब की फसलें पकी है, लेकिन बिकवाली अभी तक नहीं हुई है। सीमावर्ती जिले बाड़मेर में पिछले कुछ साल से रबी की बुवाई का आंकड़ा बढ़ा है। जीरे में तो बाड़मेर प्रदेश के अव्वल जिलों में सुमार है तो ईसबगोल की उपज भी अरबों में हो रही है। वहीं, अरण्डी भी साठ हजार हैक्टेयर में पैदा की जा रही है।

यह फसल अमूमन फरवरी-मार्च में तैयार होती है और अप्रेल-मई में बिकवाली होती है। इस बार भी जिले में करीब बीस अरब की फसलें हुई है जिनकी बिकवाली की तैयारी में किसान थे तभी कोरोना का कहर आ गया। एेसे में किसानों की अरबों की मेहनत घरों में ही कैद होकर रह गई।

दस अरब का जीरा, छह अरब का ईसब– गौरतलब है कि जिले में करीब डेढ़ लाख हैक्टेयर में जीरे की फसल हुई है। प्रति हैक्टेयर साढ़े तीन क्विंटल जीरा होता है। एेसे मेें सवा पांच लाख क्विंटल जीरे का उत्पादन जिले में हुआ है। इसकी बाजार कीमत अनुमानत दस अरब आंकी गई है। वहीं, एक लाख हैक्टेयर में ईसबगोल की फसल हुई है जिसकी कीमत करीब छह अरब है। साठ हजार हैक्टेयर में अरण्डी हुई है जो करीब चार अरब की है।

Source: Barmer News

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