बाड़मेर. सीमावर्ती जिले बाड़मेर में दूधारू पशुओं की तादाद बढ़ रही है। गायों की संख्या एक लाख से ज्यादा बढ़ी है तो भैंसे भी आठ हजार अधिक हुई है।
बकरियों की संख्या पचास हजार अधिक हो चुकी है। एेसे में बढ़ता दूधारू पशुधन दूध उत्पादन के लिए शुभ संकते है तो युवा पीढ़ी का खेती के साथ अब पशुपालन में भी रुझान बढऩे का संकते हैं। जिले प्रदेश के अग्रणीय पशुपालन जिलों की सूची में आता है। प्रदेश के जहां ५ करोड़ ७७ लाख पशुधन है तो जिले में ५४ लाख १६ हजार। इसमें से भी करीब ४१ लाख पशु दूधारू है। इनकी बढ़ती तादाद फिर से बाड़मेर के वासियों में पशुपालन के प्रति रुझान को दर्शा रही है। सबसे ज्यादा सुखद बात यह है कि अब पशुपालन के प्रति युवा पीढ़ी रुचि रख रही है, जिसके कारण गांवों में गायों के टोळे, भेड़-बकरियों के रेवड़ नजर आने लगे हैं।
जिले में २०१२ की पशुगणना के अनुसार ७ लाख ८८ हजार गोवंश था जो २०१९ में बढ़ कर ९ लाख ५ हजार हो गया है। सात साल में १ लाख १७ हजार गोवंश की तादाद बढ़ी है। भैंसोंकी तादाद में भी आठ हजार की बढ़ोतरी हुई है। २०१२ में भैंसे २ लाख १४ हजार थी जो अब २ लाख २२ हजार हो चुकी है। बकरियों की तादाद भी २८. ९६ लाख से बढक़र २८.४६ हजार हो चुकी है। खेती के चलते बढ़ा पशुधन- गौरतलब है कि जिले में पिछले कुछ सालों से सिंचित खेती का क्षेत्रफल बढ़ रहा है। वर्तमान में करीब साढ़े तीन लाख हैक्टेयर में सिंचित खेती हो रही है।
एेसे में पशुओं के लिए चारे, पानी की समस्या मिट गई है। गांवों में हरा चारा मिलने पर लोग पशुपालन कर रहे हैं जिससे कि घर में ही दूध-दही मिल सके। डेयरी व्यवसाय दे रहा रोजगार- युवा पीढ़ी में डेयरी व्यवसाय के प्रति भी रुझान बढ़ रहा है। शहर हो या गांव हर जगह युवा पीढ़ी खेती के साथ डेयरी को भी स्वरोजगार के रूप में अपना रही है।
इस पर पशुपालन को बढ़ावा मिल रहा है।
बाड़मेर में लिए सुखद संकेत- बाड़मेर जिले के लिए पशुओं की तादाद में बढ़ोतरी होना सुखद संकेत है। पेयजल समस्या का समाधान इसके पीछे मुख्य कारण है। वहीं, सिंचित खेती, डेयरी व्यवसाय आदि ने भी पशुपालन के प्रति युवाओं की सोच को बढ़ावा दिया है।– डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक, केवीके गुड़ामालानी बाड़मेर
Source: Barmer News