जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को कारागार महानिदेशक के साथ समन्वय करते हुए प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों का एक कम्प्यूटरीकृत डेटाबेस तैयार करने के निर्देश दिए हैं, जिसमें दोषी की गिरफ्तारी की तारीख, उसे दी गई और जेल में भोगी गई सजा, फरारी की अवधि सहित पैरोल आदि का विस्तृत विवरण शामिल होगा। कोर्ट ने 14 सितंबर को पालना रिपोर्ट मांगी है। सजायाफ्ता बंदियों के पैरोल सहित अन्य अधिकार हासिल करने में कठिनाइयों को रेखांकित करते हुए न्यायाधीश संदीप मेहता तथा न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग की खंडपीठ ने राकेश की याचिका की सुनवाई के बाद राज्य के सभी केंद्रीय कारागारों के प्रवेश द्वारों पर एक साइन बोर्ड लगाने को कहा है, जिस पर राजस्थान कैदी रिहाई पैरोल नियम, 2021 के नियम 10 का सार हिंदी में प्रदर्शित किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि संबंधित जेल अधीक्षक का यह कर्तव्य होगा कि वे सभी पात्र बंदियों को पैरोल पर रिहा होने की पात्रता होने पर उनके अधिकार के बारे में सूचित करेंगे।
हैरान करने वाला मामला
राकेश की याचिका के तथ्य हैरान करने वाले हैं। राकेश बाड़मेर के ओपन एयर कैंप में उम्रकैद की सजा काट रहा है और 19 जुलाई तक 14 साल, 3 महीने 20 दिन की सजा काट चुका है, लेकिन उसे आज तक पैरोल नहीं मिली। उसने पहली बार 20 दिनों की पैरोल पर रिहाई के लिए एक आवेदन पेश किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया, मगर ज़मानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त बाधा बन गई। इस पर उसने पारिवारिक परिस्थितियों और अन्य बाधाओं का हवाला देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जांच में तथ्य सही पाए गए। इस पर टिप्पणी करते हुए खंडपीठ ने कहा कि तथ्य बहुत ही दयनीय स्थिति को प्रकट करते हैं। याचिकाकर्ता ने 14 साल की कैद की सजा काट ली है और पहली बार उसे पैरोल पर रिहा करने पर विचार किया गया है। कोर्ट ने हालांकि उसे 40 दिनों की पैरोल दे दी लेकिन कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 की भावना के मद्देनजर अदालतों ने बार-बार माना है कि सजा का सुधारवादी सिद्धांत दोषियों के समाज में पुन: एकीकरण को सुनिश्चित करने का सही तरीका है। हमारे सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें लंबे समय तक जेलों में रहने वाले कैदी गरीबी या अशिक्षा और अन्य तुच्छ कारणों से पैरोल की सुविधा का लाभ उठाने में असमर्थ हैं, जिससे कल्याणकारी कानून भावना को ठेस पहुंची है।
Source: Jodhpur