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बाड़मेर पत्रिका.टूटते रिश्तों को जोडऩे की जिम्मेदारी समाज और परिवार दो संस्थाओं की है।

परिवार के मुखिया और सभी सदस्यों को भी यह ध्यान देने की जरूरत है कि रिश्तों में खटास की जड़ क्या है? बातों को जल्दी समझ लिया जाए तो परिवार नहीं टूटेंगे लेकिन जहां पर अकड़, गुस्सा और अहम हावी रहता है वहां रिश्तें बनने की बजाय बिगड़ते है।

जिले में पांच साल में 50 बच्चों की मौत झकझोरती है। मासूम बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा? क्षणिक आवेश इन बच्चों की जिंदगी खराब कर जाता है। मां-बाप बच्चों के खातिर ही सही, जिंदगी को सोचें। पत्रिका ने इस मुद्दे पर सामाजिक संस्थाओं के विचारवान लोगों से बात की तो उन्होंने खुलकर इस पर राय रखी।

आत्मचिंतन करें महिलाएं ही क्यों आत्महत्या कर रही है। प्रेमी युगल भी आत्महत्या कर रहे है।

सामाजिक ताना-बाना बिखर रह है। बहुत उन्नति की दौड़ में यह सबकुछ हो रहा है। संयुक्त परिवार भी टूट रहे है। मोबाइल और टी वी ने नैतिक मूल्य बदल दिए है। बच्चों की शिक्षा भी स्कूल से मोबाइल की दुनियां में आ गई है। मां-बाप के पास में समय नहीं है। बड़े बुजुर्गों की भूमिका गौण हो रही है। अब गहन अन्वेषण व आत्मचिंतन की जरूरत है। – रावल किशनसिंह जसोल, अध्यक्ष मां राणी भटियाणी मंदिर ट्रस्ट जसोल

संस्कारवान शिक्षा जरूरीपारीवारिक माहौल में संस्कारों की शिक्षा का बड़ा महत्व है। नैतिकता का पाठ प्रतिदिन स्कूलों में और परिवार में पढ़ाना चाहिए। साथ ही जहां पर पारीवारिक अशांति का माहौल हों वहां पर परिवार के मुखिया का दायित्व है कि वह इस बात को समझते हुए अपनी भूमिका का निर्वहन करें। परिवार में सबकी सुनना जहां जरूरी है वहीं मुखिया की मानना बहुत जरूरी है। सामाजिक तानाबाना मजबूत होना चाहिए।– प्रदीप राठी, प्रांतीय महासचिव भारत विकास परिषद

सामाजिक संस्थाएं आगे आएंसामाजिक संस्थाओं की भूमिका समाज में इस तरह के घटनाओं की रोकथाम में मुख्य है। इन घटनाओं को लेकर चर्चा जरूर होती है लेकिन समाधान को लेकर प्रयास कम हो गए है। संयुक्त परिवारों का विघटन होने के बाद यह स्थितियां बढ़ रही है। संयुक्त परिवार में नहीं रहने के बावजूद भी पारीवारिक ढांचा इतना मजबूत होना चाहिए कि परिवार में एक दूसरे से मिलना और समझने का प्रयास हों। तभी इन घटनाओं को कम किया जा सके। पारीवारिक दूरियां खत्म होनी चाहिए।– आम्बाराम बोसिया, कोषाध्यक्ष मेघवाल समाज संस्थान

पुलिस-प्रशासन ध्यान दें इस तरह की घटनाएं जिन क्षेत्र में ज्यादा हो रही है उनकी जानकारी आ रही है। चौहटन, धोरीमन्ना, गुड़ामालानी के ज्यादा इलाके है। इन क्षेत्र में पुलिस-प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर जागरूकता शिविरों का आयोजन करवाए। आर्थिक रूप से कमजोर व कम शिक्षित परिवारों के बीच पहुंचकर पारीवारिक समस्याओं के समाधान को लेकर वार्ता की जाए। विद्यालयों में भी इस तरह का माहौल बनना चाहिए कि नैतिक शिक्षा के जरिए पारीवारिक मजबूती का पाठ पढ़ाया जाए।- एडवोकेट किरण मंगल

Source: Barmer News

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