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युद्ध से आस्था का ज्वार और बीएसएफ को मिले तनोट वारियर्स
– 1965 के युद्ध में मंदिर की जगी आस्थ
-3000 बम पाकिस्तान ने बरसाए
-01 भी बम नहीं फटा
– 450 जिंदा बम मौजूद
रतन दवे
बाड़मेर पत्रिका.
भारत-पाक के 1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने जब बमबारी की तो लोंगेवाला के निकट एक छोटे से देवी मंदिर के पास आकर बम गिरे लेकिन फटे नहीं। युद्ध लड़ रहे सैनिकों का आत्मबल यह देखकर इतना बढ़ गया कि उन्होंने युद्ध मैदान में कहा कि देवी हमारे साथ है,फतेह होगी। भारत ने यह युद्ध जीता और देवी के इस चमत्कार के बाद तनोट के मंदिर आस्था स्थल बना दिया। उस समय आरएसी की बटायिलन ने यह युद्ध लड़ा था जो बाद में बीएसएफ की 13 वीं वाहिनी हो गई। जो तनोट वारियर्स के नाम से जानी जाती है और बीएसएफ अब माता की इतनी भक्त है कि जहां भी 13 वीं वाहिनी पोस्टिंग लेती है माता की प्रतिमा को वहां स्थापित कर पूजा करती है। इन दिनों तनोट वारियर्स बाड़मेर में है।
1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध में चौथी बटालियन आरएसी को जैसलमेर के तनोट में सेना के साथ में बॉर्डर पर तैनात किया था। यहां युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने 3000 बम बरसाए लेकिन धोरों के एक छोटे से मंदिर के पास आकर बम गिरे लेकिन फटे नहीं। यह चमत्कार देखकर फौज का हौंसला इतना बुलंद हुआ कि उन्होंने फतह हासिल की और लोंगेवाला में पाकिस्तान को टैंक रेजिमेंट को छोड़कर उल्टे पांव भागना पड़ा।
भक्त हो गई बीएसएफ
चौथी आरएसी को बाद में 13 वीं बटालियन बीएसएफ बनाया गया तो युद्ध जीतने के गौरव के रूप में इनको तनोट वारियर्स कहा जाने लगा। 1971 के युद्ध में तनोट वारियर्स छाछरो तक पहुंचे और वहां करीब एक साल तक रहे थे। बीएसएफ 1965 के युद्ध से तनोट माता की भक्त है और जहां यह बटालियन जाती है वहां पर माता की प्रतिमा मंदिर में स्थापित कर पूजा की जाती है।
तनोट में भी आस्था का ज्वार
1965 का यह छोटा सा मंदिर अब सरहद का शक्तिस्थल है। जैसलमेर जिला मुख्यालय से 120 किलोमीटर दूर मंदिर में बीएसएफ की देखरेख में है। बीएसएफ जवान
यह है मंदिर का इतिहास
-तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने विक्रम संवतï 787 को माघ पूर्णिमा के दिन बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था।
-मौजूदा समय में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
-पाकिस्तान के हजारों बम जिस मंदिर परिसर में बेदम हो गए थे।
-ऐसे चमत्कारी स्थल का दर्शन करने पाक सेना का ब्रिगेडियर शाहनवाज खान भी 1965 युद्ध के बाद पहुंचे थे।
-बताते हैं कि खान ने भारत सरकार से अनुमति लेकर यहां माता की प्रतिमा के दर्शन किए थे और चांदी का एक सुंदर छत्र भी चढ़ाया।
-ब्रिगेडियर खान का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी माता के चमत्कार के आगे दुश्मन देश के समर्पण की कहानी खुद कहता है।

Source: Barmer News

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