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जोधपुर. प्रदेश के सहकारिता विभाग का स्लोगन ‘एक सबके लिए, सब एक के लिए’ विभागीय अधिकारियों व कार्मिकों पर ही सटीक बैठ रहा है। अधिकांश समितियों में गबन-घोटालों की परतें खुलने के बाद भी आंच नहीं आती क्योंकि जांच तीसरी एजेंसी की बजाय विभागीय अधिकारी ही करते हैं।

ऑडिट में पसंदीदा सीए फॅर्मों से जांच से गड़बडिय़ों पर परदा रहता है। नाबार्ड और आरबीआई के नियमों को दरकिनार कर यहां नियुक्तियों में मनमानी की जा रही है। अधिकांश सहकारी व डेयरी समितियों में राजनेताओं के परिवारों का वर्षों से दबदबा है, जिसके चलते नियुक्तियों में इनकी ही चलती है।

धारा-55 की जांच सेवानिवृत्ति तक लंबित
सहकारी समितियों में बड़ी खामी यह है कि सहकारी अधिनियम की धारा-55 के तहत होने वाली जांचे लंबित रहती है। इसमें वित्तीय दायित्व निर्धारित होता है। जांच होने से पहले संबंधित अधिकारी ही तब तक सेवानिवृत्त हो जाता है। जांच अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं होती है, ऐसे में सभी के हौसले बुलंद रहते हैं।

भ्रष्टाचार एक नजर
– सीकर, चित्तौडगढ़़, अलवर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, पाली सेन्ट्रल कॉपरेटिव बैंक में करोड़ों का गबन हुआ है। एक सप्ताह पूर्व भरतपुर के कॉपरेटिव बैंक में दो करोड़ का गबन मिला है।
– डूंगरपुर में ऋण वितरण में करीब 150 करोड़ का घोटाला सामने आया। प्रदेश स्तर पर प्रस्तावित जांच अभी तक पूरी नहीं हुई।
– जैसलमेर जिले की सहकारी समिति सिपला व नागौर की रायधनू में झूठे शपथपत्रों के आधार पर फर्जी ऋण वितरण।

कभी नहीं हुए सात सहकारी संघों के चुनाव
सहकारिता की 23 शीर्ष संस्थाएं हैं, जिनमें से 7 अभी अस्तित्व में नहीं है तो अन्य सात के चुनाव आज दिन तक नहीं हुए। इनमें सहकारी आवासन संघ, तिलहन उत्पादक संघ, सहकारी वित्त एवं विकास निगम तथा अनुसूचित जाति सहकारी निगम लिमिटेड प्रमुख है। राजफेड 1992, सहकारी मुद्रणालय के चुनाव 1994 के बाद नहीं हुए हैं। केन्द्रीय सहकारी बैंकों, जिला सहकारी बैंक, क्रय विक्रय समितियों के चुनाव 2009 और ग्राम सेवा सहकारी समितियों के चुनाव वर्ष 2011 के बाद नहीं हुए।

आधी समितियां निष्क्रिय
पंजीकृत 36122 समितियों में से 15 हजार से अधिक निष्क्रिय है। कुल 4793 महिला समितियों में से 2435 निष्क्रिय है। ऐसे ही हालात प्राथमिक डेयरियों के हैं।

Source: Jodhpur

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