जोधपुर. जिले के तिलवासनी क्षेत्र में अज्ञात बीमारी के कारण 40 हरिणों की मौत का सिलसिला अभी थमा ही नहीं था कि खेजड़ली के रेस्क्यू सेंटर में पिछले दो दिनों में एक एक कर छह ब्लेक बक व चिंकारों की मौत हो गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए माचिया जैविक उद्यान के वन्यजीव चिकित्सक ज्ञानप्रकाश और उपवन संरक्षक (वन्यजीव) विजय बोराणा मौके पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया।
डीएफओ बोराणा ने प्रथम दृष्टया हरिणों की मौत गलघोंटू बीमारी के संक्रमण से होने की आशंका जताई है। तिलवासनी से कुछ हरिण रेस्क्यू सेंटर लाए गए थे, जिससे संभवत: यह संक्रमण अन्य वन्यजीवों में फैला है। जिले के वन्यजीवों में तेजी से फैल रही गलघोंटू बीमारी के संक्रमण से सबसे ज़्यादा श्वसनतंत्र प्रभावित होने के कारण अब तक करीब 50 से अधिक काले हरिणों व चिंकारों की मौत हो चुकी है।
थार में हाइपोडार्मा बॉविस
चिंकारा प्रजाति व कुछ अन्य जानवरों में इन दिनों चमड़ी रोग हाइपोडार्मा बॉविस फैल रहा है। वन्यजीवों में माह सितंबर से दिसंबर के बीच चमड़ी पर छोता उभार दूर से देखा जा सकता है। इसका आकार लगभग एक से दो सेंटीमीटर (नींब की निंबोली) जितना होता है। यह एक प्रकार की वार्बल मक्खी के जीवन चक्र की अवस्था है, जो होस्ट जानवर के शरीर पर पाई जाती हैं। इसस चिंकारों के शरीर में तेज जलन व खुजली होती है। इसके कारण ये जानवर कई बार बेतहाशा दौड़ते भी नजर आते हैं।
इनका कहना है…
वरबाल मक्खी का जीवन चक्र एक वर्ष में सम्पूर्ण होता है। यह चमड़ी की व्याधि सिर्फ चिंकारा प्रजाति के जानवरों में ही देखने को मिलती है । यह एक प्रकार की सेल्फ क्यूरेबल डिजीज है। केवल इस बीमारी का इलाज करवाने के लिए चिंकारा को नहीं पकडऩा चाहिए, नही तो कैप्चर मायोपेथी के शॉक से नुकसान हो सकता है।
– डॉ.श्रवण सिंह राठौड़, वेटेरिनरी साइंटिस्ट, गोडावण संरक्षण एवम प्रजनन प्रोजेक्ट, जैसलमेर
Source: Jodhpur