दिलीप दवे बाड़मेर. कोरोना के चलते स्कू लों में बंद स्वास्थ्य परीक्षण चिल्ड्रन विथ स्पेशल नीड (सीडब्ल्यूएसएन) के चलते हजारों बच्चों को न केवल स्वास्थ्य की जानकारी मिल रही है वरन बीमारियों का पता नहीं चलने पर समय पर उपचार से भी वंचित रहना पड़ रहा है।
स्वास्थ्य जांच नहीं होने के कारण ऑपरेशन नहीं हो रहे तो बहरे बच्चों को सुनने की मशीन नहीं मिल रही, विशेषयोग्यजन को ट्राइसाइकिल के अभाव में परेशानी झेलनी पड़ रही है। जिले ४८१२ विद्यालयों के चार लाख पन्द्रह हजार से ज्यादा विद्यार्थियों का दो साल से स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ है।
प्रदेश के विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की राज्य सरकार की महत्ती योजना स्वास्थ्य परीक्षण के तहत हर साल स्वास्थ्य की जांच होती थी। चिकित्सा विभाग की टीम प्रत्येक स्कू ल में जाती थी जहां हरेक बच्चे का वजन, लम्बाई, आंख, कान आदि की जांच की जाती थी। इस दौरान किसी विद्यार्थी में बीमारी होने पर उसकी जानकारी भी होती थी जिसके बाद रैफरल कार्ड बना कर बच्चे को नजदीकी चिकित्सा संस्थान में भेजा जाता था। इसके बाद बीमारी का इलाज हो जाता था। विशेषकर छोटे बच्चों र्मे ह्रदय में छेद के कई मामले सामने आते थे जिनका सरकार की ओर से निशुल्क इलाज हो जाता था। लम्बे समय से चल रही योजना पर पिछले दो साल से कोरोना के चलते ब्रेक लगा हुआ है। इस पर अब बच्चों में कुपोषण हो या फिर कोई बीमारी इसका पता ही नहीं चल पा रहा है। एेसे में इलाज हो ती तो कैसे?
यों करते थे जांच- चिकित्सा विभाग की टीम स्कू लों में जाकर बच्चों की जन्म तिथि के आधार पर उसकी उम्र का पता लगाती थी। जिसके बाद वजन व ऊंचाई की जांच करते थे। कम वजन होने पर कोई बीमारी नहीं है इसको लेकर बच्चे से सवाल जवाब होते थे तो परिजन से भी पूछा जाता था फिर रैफर योग्य मामला होने पर आगे भेज इलाज करवाया जाता था।
कई बच्चों को मिली नई जिंदगी- सरकार की इस महत्ती योजना से जिले में कई बच्चों को छोटी उम्र में ही बीमारी होने का पता चल गया जिसके बाद परिजनों ने रैफरल कार्ड के जरिए चिकित्सालय में जाकर बच्चों के ऑपरेशन करवाए। इस पर एेसे बच्चों के न केवल चेहरे खिले वरन नई जिंदगी भी मिल गई। निशक्तजन को चक्कर काटने से छुटकारा- निशक्तजन बच्चों के लिए यह योजना बडी काम की है। क्योंकि निशक्तजन प्रमाण पत्र के लिए चिकित्सा बोर्ड के चक्कर काटने होते हैं लेकिन स्कू ल में जांच टीम आने पर हाथोंहाथ निशक्तजन को प्रमाण पत्र मिल जाता है। वहीं, कम सुनने वाले बच्चों को ईयर मशीन, गूंगे-बहरे बच्चों को मशीन, ट्राइसाइकिल आदि भी मिल जाती थी। जिले में ३१०१, प्रदेश स्तर पर ७४३३० बच्चे- बाड़मेर जिले में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की तादाद ३१०१ है जबकि प्रदेश में ७४३३० विद्यार्थी है। इनको इस योजना से विशेष फायदा मिलता है क्योंकि स्कू ल में ही उनकी जांच हो जाती है। हालांकि इनकी जानकारी पूर्व में आवेदन करते वक्त भर ली जाती है जिस पर हर जनवरी में शिविर आयोजित होता है जहां इन बच्चों को ले जाकर उपकरण दिए जाते हैं।
जरूरी है स्वास्थ्य परीक्षण- बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी है। स्कू ल में होने से साल कई बच्चों की बीमारियों का पता चलता है जिससे समय पर उपचार भी मिल जाता है। अब दो साल से स्वास्थ्य जांच बंद है। स्कू ल खुल चुके हैं इसलिए अब स्वास्थ्य जांच की जाए।- शेरसिंह भुरटिया, शिक्षक नेता राजस्थान शिक्षक संघ प्राथमिक एवं माध्यमिक
हर साल होती है जांच- हर साल स्कू लों में स्वास्थ्य जांच होती है। आशा सहयोगिनी, एएनएम आदि आकर बच्चों की जांच करती है। रैफरल योग्य बच्चों का कार्ड बना उनको चिकित्सा संस्थान भेजा जाता है।- कृष्णसिंह राणीगांव, सीबीईओ बाड़मेर
कोरोना के चलते बंद, अब शुरू – कोरोना के चलते स्कू ल बंद होने पर स्वास्थ्य जांच नहीं हो पा रही थी। अब निर्देश दिए गए हैं कि स्कू ल, आंगनबाड़ी केन्द्रों पर समय-समय पर जांच की जाए। कई जगह स्वास्थ्य जांच शुरू हो चुकी है।- डॉ. बी एल विश्नोई, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बाड़मेर
Source: Barmer News