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महेन्द्र त्रिवेदी
बाड़मेर. राज्यवृक्ष खेजड़ी भी रोगों से अछूता नहीं रहा है। मरुधरा का कल्पवृक्ष ’कैंसर’ की चपेट में है। इसके कारण सांगरी का उत्पादन प्रभावित हुआ है और वृक्ष को भी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदेश में खेजड़ी में इन दिनों यह रोग सामने आया है। स्थानीय भाषा में इसे गिल्डू व गळगैवड़ा के नाम से जाना जाता है।
खेजड़ी वृक्ष ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में बड़ा महत्वपूर्ण है। पेड़ से मिलने वाली सांगरी विदेशों तक जा रही है। लेकिन इस सीजन में अधिकांश पेड़ों पर गिल्डू रोग के कारण पेड़ों की शाखाओं पर बड़ी-बड़ी हरी गांठें दिखाई दे रही है। कृषि के जानकार और वनस्पति विशेषज्ञों का मानना है कि इस रोग से खेजड़ी से मिलने वाली सांगरी और खोखा का उत्पादन काफी कम हुआ है। सांगरी कच्चा फल और पकने के बाद खोखा कहा जाता है।
वनस्पति विशेषज्ञ बताते हैं कि इरिओफिस वंश का कीट खेजड़ी के पादप पर ही पूरा करता है। इससे खेजड़ी कुछ संक्रमित हो जाती है। लेकिन अभी यह संक्रमण काफी बढ़ चुका है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खेजड़ी से फल आने से पहले इसकी छंगाई की जाती थी, इसके चलते कीट की संख्या काफी कम हो जाती थी, लेकिन अब छंगाई में आने वाली लागत और लकड़ी का कम होते उपयोग के कारण इसकी देखभाल नहीं होती है। जबकि सीजन से पहले फरवरी-मार्च में ग्रामीण क्षेत्रों में खेजड़ी की नियमित छंगाई होती थी, जिसके चलते सांगरी का उत्पादन भी काफी अच्छा मिलता था।
एक्सपर्ट व्यू
खेजड़ी में अभी गिल्डू रोग का बड़ा प्रकोप देखा जा रहा है। इसके कारण सीजन में सांगरी का उत्पादन प्रभावित हुआ है, जो सांगरी आई है उसकी गुणवत्ता भी कम हो जाती है। रोग को नियंत्रण करने के लिए खेजड़ी के पेड़ की देखभाल करते हुए समय पर इसकी छंगाई जरूरी है, जिससे रोग का प्रकोप काफी हद तक कम किया जा सकता है। अभी रोग के प्रकोप के कारण पेड़ों की टहनियों पर बड़ी-बड़ी गांठें दिखाई दे रही है। जो कीट के अत्यधिक संक्रमण के कारण हो रही है। -डॉ. रिछपालसिंह, सह-आचार्य वनस्पति शास्त्र, राजकीय महाविद्यालय लूनी

Source: Barmer News

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