जोधपुर. राजस्थान पत्रिका से लम्बे समय तक जुड़े रहे प्रशांत कोठारी का शनिवार दोपहर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे 69 वर्ष के थे। लोक कला मर्मज्ञ पद्मभूषण स्वर्गीय कोमल कोठारी के पुत्र स्वर्गीय प्रशांत कोठारी के परिवार में माता, भाई, तीन बहनें व दो पुत्र हैं। अंतिम यात्रा रविवार सुबह उनके निवास स्थान 383, उम्मेद हेरिटेज, रातानाडा से सिंवाचीगेट स्वर्गाश्रम पहुंची, जहां कोठारी की पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन हो गई। तीये की बैठक (उठावणा) सोमवार शाम 6 बजे गार्डन उम्मेद हेरिटेज में होगा।
कोठारी अप्रेल, 1979 में राजस्थान पत्रिका से जुड़े थे। वे राजस्थान पत्रिका जोधपुर संस्करण की शुरुआत से लम्बे समय तक विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। मई 2011 में वे सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मृदुभाषी व मिलनसार व्यक्तित्व के धनी प्रशांत कोठारी के निधन की खबर से मीडिया जगत में शोक की लहर छा गई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कई लोगों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
देह पंचतत्व में विलीन
कोठारी के निधन पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत, महेंद्र झाबक, प्रसन्नचंद मेहता, अनिल टाटिया, डॉ संजीव सांघवी सहित शहर के गणमान्य लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की। वहीं सिवांची गेट मोक्ष धाम में कोठारी के पुत्रों ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। जहां कोठारी की पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन हो गई।
स्मृति शेष… सहृदय इंसान थे प्रशांत जी
आज सुबह 10 से साढ़े 11 बजे बजे तक भाई प्रशांत जी से घर मिलने गया। मम्मी जी और प्रशांत दोनों से गप्पशप कर कॉफी पीकर घर आए और दोपहर 1 बजे प्रशांत जी के निधन का दुःखद सामाचार मिला तो मैं स्तब्ध हो गया मन टूट गया। सोचने लगा कि दो घंटे पहले हमने साथ बैठकर जिसके साथ कॉफी पी, वह इंसान आखिर अचानक कैसे चला गया।
प्रशांत जी मेरे परम अजीज और 45 वर्षों से पारिवारिक मित्र थे। सुख-दुःख के साथी, यारों के यार, मुसीबत में सबसे पहले आकर खड़े होने वाले, इतने परिपक्व, मृदु भाषी, हंसमुख प्रतिभा के धनी इंसान थे प्रशांत जी। हफ्ते में एक फोन तो हाल-चाल पूछने आ ही जाता था। मुझे उनके आत्मीय सहयोग के कई किस्से याद आते हैं। उनमें से एक किस्सा सन् 1990 का है। मैं बहुत गम्भीर पेरेलाईज बीमारी से ग्रस्त हो गया था। चिकित्सकों ने मुझे शल्य चिकित्सा के लिए मुम्बई रैफर कर दिया। हम मुम्बई जाने के लिए जोधपुर के एयरपोर्ट पहुंचे तो प्रशांत जी वहां पहले से खड़े थे। उन्होंने शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं देते हुे मेरी पत्नी के हाथ में एक पैकेट थमा दिया। उसमें तीस हजार रुपए थे। उस जमाने में ये बड़ी रकम थी। पत्नी से उन्होंने कहा कि यह रख लो, काम आएंगे। उस इंसान का अपने मित्र के प्रति यह निःस्वार्थ भाव देखकर मैं भावुक हो गया। ऐसे कई किस्से हैं, प्रशांत दादा की सहृदयता के।
आज मैं नि:शब्द हूं। मेरा ह्रदय वेदना से बहुत बैचेन है। आज हमने साढ़े चार दशक पुराना हमारा याराना हमने अचानक बिछुड़ते हुए देखा है। यह असहनीय है। भगवान मित्र प्रशांत की आत्मा को सद्गति दे व परिवार को यह वज्रपात सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
(अविनाश-जयश्री मेहता प्रख्यात फोटोग्राफर व डिजिटल ग्राफिक डिजाइनर हैं।)
Source: Jodhpur