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बाड़मेर. व्यास युवाचार्य अभयदास ने मां भगवती कथा पंडाल में श्रावण मास कथा के तहत तीसरी कथा मीरां चरित्र का शुभारंभ पर कहा कि श्रीकृष्ण की उपासिका मीरा ने अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को पाने के लिए अपना राजसी वैभव त्याग दिया था। अपने गिरधर नागर के चरण सजाने के लिए मीरा सदा आंसुओं की लड़ियां ही पिरोती रहीं। मीरा की भक्ति में माधुर्य-भाव काफी हद तक पाया जाता है। वे अपने इष्टदेव कृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रूप में करती थीं। उनका मानना था कि इस संसार में कृष्ण के अलावा कोई पुरुष है ही नहीं। वे कृष्ण की अनन्य दीवानी थी।

कथा पंडाल में अग्रवाल पचायत अध्यक्ष गंगा विशन अग्रवाल, शंकरलाल मोदी, ओमप्रकाश मेहता, किशोर शर्मा, गुर्जर गौड़ समाज के जिलाध्यक्ष सुरेश पंचारिया, संरक्षक देवाराम गौड,इंद्र प्रकाश पुरोहित, पुखराज तापड़िया आदि उपस्थित रहे। कांता शर्मा, किशोर शर्मा, रामेश्वरी खत्री ने आरती की।

कृष्ण ने भरा नानीबाई का मायरा, कथा का समापन
बाड़मेर. सिणधरी चौराहा पर चल रही नानीबाई रो मायरो कथा का समापन मंगलवार को हुआ।

कथा वाचक संत अभयदास ने कहा कि नानीबाई मायरा नहीं भरने से नाराज हुई तो पिता नरसी मेहता ने बाई को धीरज धरने का कहते हुए कहा मुझे नारायण पर भरोसा है, फिर भी नानी बाई अनेक उलाहने देती हैं। नरसी कहते हैं कि सब लोग छुप कर भक्ति करते हैं मै खुले आम भक्ति करता हूं।

इधर बेटी के जाने पर अपने इस अपमान से नरसी व्यथित हो गए और रोते हुए श्रीकृष्ण को याद करने लगे, नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई।

युवाचार्य ने बताया कि अपमान और प्रताड़ना से पीड़ित नानीबाई आत्महत्या करने दौड़ पड़ी लेकिन श्री कृष्ण ने नानी बाई को रोक दिया और कहा कि कल वह स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिए आएंगे।

 

 

Source: Barmer News

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