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जोधपुर. साइबेरिया, मंगोलिया सहित मध्य एशिया के देशों से सर्दियों के समय में मारवाड़ में प्रवास के लिए आने वाली कुरंजा यानी डोमिसाइल क्रेन का नया आवास रिफाइनरी के पास बनेगा। रिफाइनरी के लिए बनाई गई वाटर बॉडीज में कुरंजा का आवास विकसित किया जाएगा। अगले दो-तीन साल में यहां कुरंजा की आवाजाही शुरू होने की उम्मीद है।

तेल हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) की ओर से बाड़मेर के पचपदरा में Refinery का निर्माण किया जा रहा है। वर्ष 2013 में इसे मंजूरी मिली थी। अब तक दो तिहाई से अधिक काम हो चुका है। रिफाइनरी की समस्त 13 यूनिट मार्च 2024 तक स्थापित हो जाएगी। बीते सात-आठ साल में औद्योगिकरण के कारण रिफाइनरी स्थल के आसपास वन्य जीवों का आवागमन व आवास प्रभावित हुआ है। पारिस्थितिकी तंत्र में समन्वय स्थापित करने के लिए राजस्थान रिफाइनरी प्रबंधन ने सबसे पहले कुरंजा का आवास आसपास विकसित करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के वन्यजीव अनुसंधान केन्द्र के साथ एमओयू किया गया है। इसके लिए 18 लाख का प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी गई है।

पर्यटन भी विकसित होगा

रिफाइनरी के आसपास कुरंजा का आवास विकसित होने से अन्य वन्य जीवों का भी आगमन होगा। इससे औद्योगिक क्षेत्र के साथ पर्यटन भी विकसित होगा।

देश में सर्वाधिक कुरंजा आती है जोधपुर में

मध्य एशिया के देशों में तापमान शून्य से नीचे चलने जाने पर कुरंजा भारत में प्रवास के लिए हजारों मील का सफर तय करके राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र में आती है। सर्वाधिक प्रवसन राजस्थान में और यहां भी जोधपुर में होता है। जोधपुर में खींचन, जाजीवाल, जाजीवाल धोरा, गुड़ा बिश्रोइयां, चराई ओसियां, शिकारपुरा, सरेंचा, जसवंत सागर में आती है। इसके बाद पाली, जैसलमेर व बाड़मेर में कर नम्बर आता है। मारवाड़ में हर साल 40 हजार से अधिक कुरंजा आती है।

मारवाड़ के तीन प्रमुख कुरंजा स्थल

वर्ष —– खींचन— सरदारसमंद—- हेमावास

2015 — 19500— 10800 — 5500

2016 — 20000 —11000 — 6500

2017 — 23000 — 14000 — 6800

2018 — 22000 — 14400 — 7500

2019 — 25000 — 13500 — 7000

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प्रोजेक्ट के तहत पचपदरा एवं समीपवर्ती क्षेत्रों में वर्तमान में कुरंजा की संख्या का पता लगाया जाएगा। रिमोट सेंसिंग, जीआईएफ और सेटेलाइट से पक्षी के लिए उपयुक्त आवास स्थल तलाशा जाएगा। पक्षी के सम्भावित खतरों की पहचान एवं उनके समाधान पर शोध किया जाएगा।- डॉ. हेमसिंह गहलोत, निदेशक, वन्यजीव अनुसंधान केंद्र (जेएनवीयू)

Source: Jodhpur

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