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धर्मसिंह भाटी/ बाड़मेर. गोमरखधाम की प्राकृतिक छटा विलक्षण है। यहां रेगिस्तान के वीराने में पहाड़ों, धोरों व लम्बे मैदानों का अद्भूत संगम अतुलनीय है। गोम ऋषि की इस तपोभूमि का प्राकृतिक व धार्मिक महत्व सैकड़ों वर्षों से है। बीते पांच वर्ष में यहां बनाए गए बांधों से यह स्थान निखरकर जलसंरक्षण की मिसाल बन गया है।

जिला मुख्यालय बाड़मेर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर तारातरा मठ है। तारातरा मठ से पांच किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में गोमरखधाम है। तारातरा की पहाडिय़ों के बीच छिपे इस स्थान तक पहुंचने के लिए पांच वर्ष पहले तक सड़क मार्ग नहीं था। तारातरा मठ के महंत स्वामी प्रतापपुरी के प्रयासों से इस धाम तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण हुआ। इसके बाद इस स्थान का विकास शुरू होने के साथ स्थानीय पर्यटकों की आवाजाही शुरू हुई। इन दिनों प्रतिदिन सैकड़ों लोग गोमरखधाम पहुंच रहे हैं।

गोमरखधाम का कायाकल्प करने वाले स्वामी प्रतापपुरी बताते हैं कि यह स्थान संतों की तपोभूमि होने के साथ-साथ कूदरत का वरदान है। करीब 25-30 बीघा में फैले बड़े बांध में भविष्य में बोटिंग की योजना है। वहीं गोमरखधाम की पहाडिय़ों में ही गुरूकुल, हॉस्टल, नेच्यूरोपेथी हॉस्पीटल व जैविक खेती का प्लान है। पिछले पांच वर्ष में यहां पर हजारों पौधे लगाए गए, जो अब पेड़ बनते जा रहे हैं।

बांधों की त्रिवेणी आकर्षण का केन्द्र:
गोमरखधाम में पहाड़ी की गोद में छोटा-सा मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पूर्व दिशा में धोरे की ऊंचाई पर गोलाकार कुटिया का समूह है, जो हिमाचल के धर्मशाला जैसा लुक देता है। मंदिर से करीब 100 फीट की ऊंचाई पर एक बांध बनाया गया है। एक तरह से यह बांध प्राकृतिक ही है, जो करीब 70 फीट गहरा है। बांध के एक हिस्से को आरसीसी निर्मित कर पानी के ठहराव व निकासी को सुनिश्चित किया गया है। इस बांध में पहाड़ों के ऊपर से झरनों के रूप में पानी आता है। बांध के ठीक नीचे मंदिर के सामने 22 फीट गहरा बांध बनाया गया है। ऊपर का बांध ओवरफ्लो होने पर नीचे के बांध में आता है। 22 फीट गहरे बांध से नहरनुमा एक चैनल बनाई गई, जो खुले मैदान में बड़े बांध में जाकर मिलती है। बांधों की यह त्रिवेणी गोमरखधाम में आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। फिलहाल तीनों बांध लबालब है और झरने अनवरत बह रहे हैं।

Source: Barmer News

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