बाड़मेर. डॉ.आईदान सिंह भाटी राजस्थानी और हिंदी के प्रख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी समेत विभिन्न साहित्यिक संस्थानों से समादृत डॉ. भाटी की कविता में परम्परा और आधुनिकता का मेल है। हाल ही में उनको साहित्य के प्रतिष्ठित बिहारी पुरस्कार के लिए नामित किया गया है।
डॉ आईदान सिंह भाटी से साक्षात्कार-
सवाल- लेखन की प्रेरणा कहां से मिली?
उत्तर- मुझे सृजन की प्रेरणा लोक परिवेश से मिली। तत्कालीन समय में डिंगल कविता के नाद सौंदर्य और उसकी लयात्मकता से प्रभावित होकर कविता की ओर कदम बढ़ाए।
सवाल- कविता में संवेदना और विचार के संदर्भ में विचार
उत्तर- इस दौर में साहित्य के दो ग्रुप हैं-एक जो कविता को सामाजिक परिवर्तन का हथियार मानता है। दूसरा ग्रुप उसे केवल कला रूप तक सीमित करता है। संसार के महान विचारकों ने कविता को सामाजिक परिवर्तन का हथियार माना है,भारतीय संस्कृति और पौराणिक स्वरूप इसका समर्थन करते हैं,इसलिए मेरा मत भी परिवर्तनगामी सत्यों के साथ है।
सवाल- बाजारवाद और वैश्वीकरण के इस दौर में कविता कितनी प्रासंगिक है?
उत्तर- इस दौर में कविता का महत्व पहले से भी अधिक बढ़ गया है। रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है कि तकनीक मानवीय संवेदना को कमजोर करती है तो यह अवश्य है कि इस दौर के लोगों के रुझान बदले हैं लेकिन प्रारम्भ से ही मनुष्य को सही और सार्थक शिक्षा दी जाए तो साहित्य की संवेदना इस दौर में भी मनुष्य के लिए सहायक होगी।
सवाल- आपकी कविता में जो रूप चित्र हैं उस सन्दर्भ में आपका क्या कहना है?
उत्तर- मेरी कविता परिवेश से प्रभावित है और खासकर रेगिस्तान के सुख दु:ख के चित्र जो मनुष्य की आंखों से झरते हैं उसे मैंने पकडऩे की चेष्टा की है। इन रूप चित्रों में कहीं दु:ख है,कहीं सुख है तो कहीं करुणा है तो कहीं घृणा है।
सवाल- राजस्थानी कविता में परम्पराबोध से आपका क्या आशय है?
उत्तर- परम्परा बोध से मेरा आशय हमारे जीवन की सबल धारणाओं से है न कि नकारात्मक प्रवृत्तियों से। परम्परा के नाम पर जो लोग रूढ़ी का समर्थन करते हैं उनकी नजर में परम्परा नकारात्मक प्रवृत्तियों का नाम है। आचार्य हजारी प्रसाद जैसे आलोचक परम्परा में केवल सबल मानवीय बोध को ही गिनाते हैं।
मैं भी इसी सबल मानवीय बोध की परम्परा को मानता हूँ। इस परम्परा बोध के साथ आधुनिकता का मेल करवाने की जरूरत है।आज की तकनीक और उसकी चीजों से जो समाज का रूप बदला है। इस आधुनिकता को हमें स्वीकार करना चाहिए।
सवाल- शिक्षा में मायड़भाषा के महत्व को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘मेरा बचपनÓ में कहा है कि बच्चों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देनी चाहिए। उन्होंने जीवन का सन्दर्भ बताते हुए लिखा है कि मुझे अंग्रेजी कविता को रटने में चार दिन लगे जबकि बांग्ला में होती तो एक घण्टे में याद हो जाती।
इस तरह मैंने अपनी भाषा में जब धौळी गाय को खड़ी बोली में सफेद पाया तो कठिनाई अनुभव की। परिवेश की शब्दावली से अलग शब्द चौंकाता है।
सवाल- राजस्थानी भाषा के लेखक कवि होने नाते राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता की रुकावट के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर- भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि से राजस्थानी एक पूर्ण भाषा है। जॉर्ज ग्रियर्सन,जुल ब्लॉख, तैस्सीतोरी और सुनीतिकुमार चाटुज जैसे विद्वानों ने राजस्थानी को पूर्ण भाषा माना है।
केंद्रीय साहित्य अकादमी ने इसे स्थान दिया है लेकिन कालान्तर में यह राजनीति का शिकार हो गई। आज छोटे-छोटे क्षेत्रों की भाषाओं को मान्यता मिल चुकी है लेकिन सम्पूर्ण सबलताओं के साथ भाषा वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत एक भाषा को राजनेता नकार रहे हैं इसका कारण केवल राजनीतिक है भाषा वैज्ञानिक नहीं है।
पूर्ण भाषा को उसका महत्व नहीं मिला तो धीरे-धीरे हमारे जीवन से दूर होती चली जाएगी और एक संस्कृति नष्ट हो जाएगी क्योंकि संस्कृति भाषाओं से जिंदा रहती है।
Source: Barmer News