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जोधपुर. सूर्यनगरी जोधपुर की स्थापना के मात्र चार माह के अंतराल बाद बसे फलोदी के मां लटियाल मंदिर में 564 सालों से अखण्ड ज्योत प्रज्जवलित है। फलोदी की बसावट से पूर्व आसपास कई नगर बसे और उजड गए, लेकिन मां लटियाल का मंदिर स्थापित होने के बाद बसे फलोदी नगर में कभी कोई विपदा नहीं आई और ना ही कभी कोई संकट से किसी का नुकसान हुआ है। चाहे भारत-पाकिस्तान के युद्ध का समय रहा हो या फिर प्रदेश में भूकम्प के झटके आए हो, फलोदी सुरक्षित रहा। यही कारण है कि फलोदी के वाशिंदे आज भी मां लटियाल की छत्रछाया में खुद को सुरक्षित मानते है।

मान्यता है कि जैसलमेर के रूद्रवा राजा से रूष्ट होकर सिद्धुजी कल्ला मां लटियाल की प्रतिमा को लेकर जब बैलगाडी पर रवाना हुए थे तब चलते चलते दो खेजडियों के बीच बैलगाडी के पहिए अटक गए। तमाम प्रयासों के बाद बैलगाड़ी को आगे ले जाने में विफल रहे तो उन्होंने वहीं पर मां का मंदिर बनाने का फैसला लिया। मंदिर के साथ ही फलोदी गांव बसा जो वर्तमान में जोधपुर जिले का सबसे बडा और जिला मुख्यालय तक पहुंचने वाला शहर बन गया है।

खेजडी का पेड है अब भी हरा-भरा

फलोदी शहर की बसावट व मंदिर निर्माण के समय मौजूद खेजड़ी का पेड़ आज भी हरा भरा है। खेजडी के दो वृक्ष वटवृक्ष की तरह फैले हुए है जिसमें मां लटियाल का वास माना जाता है। यही कारण है कि आज भी यहां आने पर सुकून और शांति मिलती है।

इसलिए खास है यह नवरात्रि

विक्रम संवत 1515 में शारदीय नवरात्रा की अष्टमी को मां लटियाल का मंदिर बना था और मां यहां पर विराजित हुई थी। इसी नवरात्रि में फलोदी व मंदिर प्रतिष्ठा दिवस संयुक्त रूप से धूमधाम से मनाया जाएगा।

Source: Jodhpur

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