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Navratri 2022: Jodhpur फलोदी की बसावट से पूर्व यहां कई नगर बसे और उजड गए, लेकिन 564 साल पहले फलोदी में मां लटियाल का मंदिर स्थापित होने के बाद बसे नगर में कभी कोई विपदा नहीं आई और ना ही कभी कोई संकट से किसी का नुकसान हुआ।

मान्यता है कि जैसलमेर के राजा से रूष्ट होकर सिद्धूजी कल्ला ने मां लटियाल की प्रतिमा को बैलगाडी पर लेकर रवाना होने के दौरान संकल्प लिया था कि जहां बेलगाडी के पहिये थमेंगे, वहीं मां का मंदिर बनाकर नए गांव की बसावट करेंगे। फलोदी स्थित दो खेजडियों के बीच बेलगाडी अटक गई और तमाम प्रयासों के बाद यह आगे नहीं बढी। ऐसे में सिद्धूजी कल्ला ने यहीं मां का मंदिर बनाया और यहीं पर फलोदी गांव बसा। जो वर्तमान में जोधपुर जिले का सबसे बडा और जिला मुख्यालय तक पहुंचने वाला शहर बन गया है।

आज भी हरा-भरा है खेजडी का पेड

फलोदी शहर की बसावट व मंदिर निर्माण के समय खेजडी का पेड हरा-भरा था, जो आज भी 564 साल बाद वैसा ही है। खेजडी के दो वृक्ष वटवृक्ष की तरह फैले हुए है, जिसमें मां लटियाल का वास माना जाता है। यहीं कारण है कि आज भी यहां आने पर लोगों को सुकून और शांति मिलती है।

नवरात्रि इसलिए है खास

564 साल पहले 1515 ईस्वी में शारदीय नवरात्रा की अष्टमी को मां लटियाल का मंदिर बना था और मां यहां पर विराजित हुई थी। इसी नवरात्रि में फलोदी का स्थापना व लटियाल मां के मंदिर का स्थापना दिवस होने से यह शारदीय नवरात्रि खास है।

Source: Jodhpur

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