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जोधपुर. शारदीय नवरात्रि की होमाष्टमी सोमवार को श्रद्धापूर्वक मनाई जाएगी । शहर के देवी मंदिरों में हवन, पूजन, भजन – जागरण एवं घरों में कन्याओं का दैवीय रूप में पूजन किया जाएगा । मेहरानगढ़ में सोमवार रात शुरू होने वाले होमाष्टमी हवन की पूर्णाहुति मंगलवार को दोपहर 12.10 से 12.40 बजे के बीच होगी ।सेवा भारती समिति की ओर से सिवांचीगेट महेश स्कूल परिसर में 18 वां सामूहिक कन्या पूजन सुबह 9.30 बजे से होगा।

Durga Ashtami 2022

समिति के उपाध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने बताया कि जोधपुर के प्रमुख संतों व समाजसेवियों के सान्निध्य में 1008 कन्याओं का सामूहिक पूजन किया जाएगा। सिन्धी महिला मंडल,सिन्धी वेलफेयर एंड मेडिकल सोसायटी की ओर से सिंधु नामदेव महल में स्थित माता वैष्णोदेवी मंदिर में कन्या पूजन किया जाएगा। मंगलवार को भजन संध्या और माता की चौकी सजाई जाएगी । बीसहथ माता मन्दिर भैरूबाग में सुबह 10 बजे से हवन का आयोजन किया जाएगा।

शुभ मुहूर्त

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.52 – दोपहर 12.39

गोधूलि मुहूर्त – शाम 5.59 – शाम 6.23

महागौरी की होती है पूजा अर्चना

नवरात्र के 8वें दिन महागौरी व मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है जो ज्ञान और आध्यात्म की प्रतीक हैं। ज्ञान एवम् आध्यात्म सांसारिक मोह-माया से हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आठवें दिन यज्ञ किया जाता है।

महानवमी

इस रंगबिरंगे, ऊर्जा से भरपूर पर्व का समापन महानवमी को होता है। इस दिन कन्या पूजा की जाती है। नौ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। इन नौ कन्याओं की पूजा मां के नौ रूप मानकर की जाती है। आश्चिन मास में शुक्लपक्ष कि प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नौ दिन तक चलने वाले नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाते हैं। नव का शाब्दिक अर्थ नौ है और इसे नव अर्थात नया भी कहा जाता है।

शारदीय नवरात्रों में दिन छोटे होने लगते है। मौसम में परिवर्तन शुरू हो जाता है। प्रकृ्ति सर्दी की चादर में लिपटने लगती है। ऋतु के परिवर्तन का प्रभाव लोगों को प्रभावित न करे, इसलिए प्राचीन काल से ही इन दिनों में नौ दिनों के उपवास का विधान है। दरअसल, इस दौरान उपवासक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगकर स्वयं को भीतर से शक्तिशाली बनाता है। इससे न वह उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करता है बल्कि वह मौसम के बदलाव को सहने के लिए आंतरिक रूप से खुद को मजूबत भी करता है।नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रूपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है।

नवरात्र का वैज्ञानिक आधार
नवरात्रि हिंदुओं के पवित्र त्योहारों में से एक है। इन 9 दिनों में नौ-दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। साल में दो बार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के रूप में मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना की जाती है। इस दौरान घर-घर में भजन-कीर्तन आदि का आयोजन होता है। शारदीय नवरात्रि को पूर्वी भारत में दुर्गापूजा और पश्चिमी भारत में डांडिया के रूप में मनाया जाता है।नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है।

यह मंत्र है फलदायक

सर्वबाधा शांति के लिएः सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।
आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया हैःदेहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

अर्थातः शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें। ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देंगी।

विपत्ति नाश के लिएः शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥

मोक्ष प्राप्ति के लिएः त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया।। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:।।

शक्ति प्राप्ति के लिएः सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।।

अर्थातः तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

रक्षा का मंत्रः शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।

अर्थातः देवी! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

रोग नाश का मंत्रः रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।

अर्थातः देवी! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

दु:ख-दारिद्र नाश के लिएः दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।।

ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिएः ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥

भय नाशक दुर्गा मंत्रः सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यास्त्रहिनो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते।

Source: Jodhpur

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