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बालोतरा. क्षेत्र के असाड़ा गांव में संचालित स्टोन क्रेशरों पर पर्यावरण नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ये प्लांट पर्यावरण के मापदंड के अनुसार संचालित नहीं हो रहे हैं। प्लांटों के आसपास न तो पौधरोपण किया गया है और न ही किसी सुरक्षा मानकों की शर्तों को पूरा किया गया है।

इन क्रेशरों की चलाते समय जिम्मेदार तय मानकोंं को दरकिनार कर कामकाज कर रहे हैं। क्रेशरों से उडऩे वाली धूल-मिट्टी से होने वाले नुकसान पर शायद थोड़ा बहुत भी मंथन किया होता तो क्रेशर संचालक नियमों की रत्ती भर पालना जरूर करते, लेकिन यहां पर पूरी तरह से नियमों को अनदेखा कर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

संचालक धूल के साथ हवा में उड़ा रहे नियम-

रिफाइनरी कार्य में कंक्रीट व मूंगिया की मांग बढऩे के बाद असाड़ा गांव में क्रेशर मशीनों को 24 घंटे लगातार चलाया जा रहा है। संचालन में संचालक नियमों को पूरी तरह से दरकिनार कर रहे हैं।

क्रेशरों पर काम करने वाले श्रमिकों के पास उडऩे वाली धूल से बचाव के लिए आवश्यक मास्क, चश्मे भी इन्हें मुहैया नहीं करवाए जा रहे हैं।

श्रमिक बिना मुंह ढ़के ही वहां पर उड़ती धूल के बीच काम करने को मजबूर है। इसके अलावा के्रशर के चारों तरफ 10-12 फीट ऊंचाई की चारदीवारी होनी चाहिए, लेकिन किसी भी के्रशर प्लांट की चारदीवारी नहीं है। उडऩे वाली धूल की रोकथाम के लिए फव्वारे भी नहीं लगाए हैं।

धूल व मिट्टी के कण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक –

धूल व मिट्टी के कण लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। धूल व मिट्टी के कण श्वास नली व फेफड़ों में जमा हो जाते हैं। इसे फेफड़ों व श्वास नली का धीरे-धीरे लचीलापन कम हो जाता है। इससे सिलिकोसिस, दमा, एलर्जी, छींके व चर्म रोग हो जाते हैं।

– डॉ.रामनिवास पटेल, चिकित्सक

Source: Barmer News

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