जोधपुर.बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) की पढ़ाई के लिए हिंदी भाषा अब वैकल्पिक माध्यम बनने जा रहा है। संभावना हैं कि देश में जल्द ही एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी भाषा में भी हो सकेगी। नए अकादमी सत्र में देश के प्रमुख हिंदीभाषी राज्य में निजी और सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को अंग्रेजी विषय के साथ हिंदी विषय में भी पढ़ाई के लिए किताबों का विकल्प मिलेगा. इसकी शुरूआत मध्य प्रदेश से की जा रही है। इस बीच राजस्थान पत्रिका ने मेडिकल कॉलेज के यूजी-पीजी स्टूडेंट्स से बातचीत की। इस निर्णय में काफी हद तक मेडिकोज सहमत दिखे तो रेजिडेंट डॉक्टर्स ने असहमति जताई।
फोरेंसिक मेडिसिन प्रेक्टिसनर्स होने के नाते सही नहींमैं उत्तर भारत के एक हिंदी भाषी क्षेत्र की ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूं, मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि एमबीबीएस को हिंदी में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। एक फोरेंसिक मेडिसिन प्रैक्टिशनर होने के नाते। मुझे सुप्रीम कोर्ट के फैसले जैसे उच्च न्यायपालिका के फैसलों का उल्लेख करना है जो अंग्रेजी में हैं। अगर मैंने हिंदी में एमबीबीएस और पीजी की किताबें पढ़ी हैं तो मुझे अंग्रेजी में न्यायिक घोषणाओं का एहसास कैसे होगा। – डॉ. संदीप देवात, अध्यक्ष, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज रेजिडेंट डॉक्टर्स एसो.
दक्षिणी भारतीयों के लिए समझना चुनौती
एमपी में दक्षिण भारत के लोग भी अखिल भारतीय कोटा सीटों के माध्यम से एमबीबीएस के लिए आए थे कि वे पाठ्यक्रम को कैसे समझेंगे। एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री की किताबें जिनका हिंदी में अनुवाद किया गया है, वे भारतीय लेखक की ओर से लिखी गई बुनियादी किताबें हैं। लेकिन इन विषयों की कई अच्छी गुणवत्ता वाली पुस्तकें विदेशी लेखकों की ओर से लिखी गई हैं जैसे गणोंग्स फिजियोलॉजी आदि। विद्यार्थी कैसे समझेंगे।- डॉ. विनीत जोशी, रेजिडेंट डॉक्टर, मेडिसिन विभाग
सभी जर्नल, शोध लेख, मानक पुस्तकें जैसे रॉबिन्स पैथोलॉजी, हैरिसन इंटरनल मेडिसिन अंग्रेजी में लिखी जाती हैं। एक छात्र के लिए यह कैसे संभव है कि वह कुछ किताबें हिंदी में और कुछ अंग्रेजी में पढ़ें। एमबीबीएस एक फाउंडेशन कोर्स है जिसके आधार पर छात्र पीजी करता है और प्रैक्टिशनर बनता है। पीजी में सभी किताबें विदेशी लेखकों की ओर से लिखी जाती हैं। हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्र के लिए पीजी में अंग्रेजी की किताबें पढ़ना बहुत मुश्किल होगा।- डॉ. आयुषी चौधरी, रेजिडेंट डॉक्टर, गायनी विभाग
हिंदी थोंपना गलत
एमबीबीएस को हिंदी में लांच करने से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि हम मेडिकोज के लिए क्या भविष्य चाहते हैं। क्या हम विश्वस्तरीय डॉक्टर चाहते हैं , जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्य में अच्छी तरह से पढ़े-लिखे हों या हम किसी जुनून के कारण हिंदी थोपना चाहते हैं।. हिंदी हमारी मातृभाषा है और यह जनसाधारण के लिए संचार की भाषा होनी चाहिए लेकिन मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे तकनीकी क्षेत्रों में हिंदी को थोपना एक बुद्धिमानी भरा निर्णय नहीं है।
डॉ. रचिता सेवारा, रेजिडेंट डॉक्टर, शिशु रोग विभाग
दूसरा यदि तमिल भाषी क्षेत्र, मराठा भाषी क्षेत्र जैसे प्रत्येक भाषाई क्षेत्र अपनी भाषा में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करना शुरू कर देते हैं तो एक क्षेत्र के डॉक्टर अलग-अलग क्षेत्र में कैसे अभ्यास करेंगे। इस निर्णय पर विचार किया जाना चाहिए। ताकि देश को बेहतर व पारंगत और टॉप क्लास के डॉक्टर्स मिले। मेडिकल टूरिज्म के लिहाज से भी हिंदी में पढ़ाई उचित नहीं होगी।
– डॉ. भास्कर मिश्रा, रेजिडेंट डॉक्टर, इएनटी
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हिंदी का कद बढ़ेगा
इस बदलाव से मूलरूप से हिंदी माध्यम के छात्रों को अपनी अग्रिम शिक्षा उनकी मूल भाषा में करने का अवसर प्राप्त होगा। जिसमें उनमें निम्नता की भावना का हास होगा। इस क्रांतिकारी बदलाव से मातृभाषा हिंदी का पद प्रत्येक नागरिक की नजरों में काफी ऊंचा होगा। हालांकि दूसरा पक्ष देखें तो यह बदलाव अनेक छात्रों को भाषाई रूप से आश्रित बना देगा व ज्ञान अर्जन करने में अड़चन उत्पन्न करेगा।- यश खंडेलवाल, छात्रसंघ अध्यक्ष, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
एक तरह से निर्णय गलत नहीं है, लेकिन कई बिंदूओं पर विचार करना चाहिए। हरेक भाषा का ज्ञान जरूरी है, इसलिए नए चिकित्सक तैयार करने के लिए हर बिंदूओं पर तैयारी करनी होगी। ताकि नए डॉक्टर्स का सर्वागींण विकास हो सके। इस पर राजनेताओं व आला अफसरों को और सोचने की जरूरत है। क्योंकि सभी का एक ही उद्देश्य है कि चिकित्सा जगत में देश सिरमौर बने।
– पंकज कटारिया, एमबीबीएस स्टूडेंट, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
देश के पुनर्निमार्ण का क्षण
देश में पहली बार मध्यप्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में होना मेडिकल और इंजीनियरिंग विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण दिन है। मातृभाषा में शिक्षा मिलना गर्व की बात है। ये देश के पुनर्निर्माण का क्षण है। देश में क्रांति आएगी। हिंदी में मेडिकल शिक्षा करके शिवराज सिंह ने पीएम मोदी की इच्छा पूरी की है। देशभर में 8 भाषाओं में पढ़ाई हो रही है। नीट-यूजी देश की 22 भाषाओं में हो रही है। 10 राज्य इंजीनियरिंग की पढ़ाई मातभाषा में करवा रहे हैं।- डॉ. विनोद शर्मा, छात्रसंघ अध्यक्ष 2019-22, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
अच्छा प्रयोग है… इंग्लिश से दूर रहना भी गलतये एक अच्छा प्रयोग है। दूसरे देशों में भी अपनी भाषा में डॉक्टर्स की पढ़ाई चलती है। लेकिन मेरा मानना है कि विद्यार्थी हिंदी भी पढ़े और अंग्रेजी में भी भरपूर ज्ञान रखे। ताकि हम हर पटल पर देश को अच्छा बना सके। इस निर्णय में कोई बुराई नहीं। निर्णय क्रांतिकारी व स्वागत योग्य है। देश की अखंडता व एकता के लिए ऐसे कदम उठाना जरूरी है।
– विमर्श व्यास, मेडिकोज, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
निर्णय ठीक है, लेकिन पारंगता अंग्रेजी में भी जरूरीमध्यप्रदेश सरकार ने अच्छा कदम उठाया। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि मेडिकोज अंग्रेजी के स्तर पर भी तैयार करना पड़ेगा। ताकि वे विदेशी किताबें भी ढंग से समझ सके। इन सभी बिंदूओं को ध्यान में रखेंगे तो देश को आगे अच्छे डॉक्टर्स मिलेंगे। इन बातों पर सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि निर्णय ठीक है।
– वैदांशी भारद्वाज, मेडिकोज, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
Source: Jodhpur