’हे’ बनाकर कर रहे पशुओं के लिए चारे का भंडार
हीरा की ढाणी. खारड़ा चारणेत -दानपूरा सड़क मार्ग के पास खेत में घास फूस से बनीज् हे ज्।
हीरा की ढाणी ञ्च पत्रिका. गांवों में किसान इन दिनों ज्हेज् स्थानीय भाषा में ढूंगरी बनाकर चारे को संरक्षित कर रहे हैं, जिससे चारे के अभाव में इसे खिलाकर पशुओं की शारीरिक वृद्धि और दुग्ध उत्पादन बरकरार रखा जा सके। चारा संरक्षण की प्रचलित विधियों में से ज्हेज् बनाना सरल एवं कम मेहनत वाला काम है। इस विधि में हरे चारे की पौषकता से भरपूर होने पर काटा गया। उसके बाद इसे छाया में सुखाया गया। किसानों ने चारे का रंग, पत्तियों पौषक तत्व का ध्यान रखते हुए छाया में घास को सुखाया गया। उसी को अब सूखाने के बाद किसान खेतों में ही जहां चुहों का प्रकोप नहीं हो वहां पर ढुंगरी का भंडारण कर रहे हैं। जब चारा किसी परिस्थिति में नहीं मिल पाता है तभी इस ढुंगरी वाले पौष्टिक चारे को पशुओं को खिलाया जाएगा। पशुपालकों का मानना है कि इससे पशुओं में ताकत बनी रहेगी व बीमारी भी नहीं होगी। इन दिनों ग्रामीणों क्षेत्रों में किसान इस तरीके से घासफूस की ढुंगरी बना रहे हैं। यहां अधिकतर किसान पशुपालन व खेती बाड़ी पर ही निर्भर है।
Source: Barmer News