जोधपुर. मां के गर्भ या जन्म लेने वाले शिशुओं में अक्सर किसी कारण से ऑक्सीजन व रक्त की कमी हो जाती है। जिसकी वजह से बर्थ एसफिक्सिया नाम की गंभीर बीमारी हो जाती है। इस रोग की सही समय पहचान न करने से शिशुओं में शारीरिक-मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (सेरिब्रल पाल्सी) रोग भी हो जाता है। गांवों-ढाणियों में डाइग्नोस के अभाव में कई शिशुओं का मर्ज भविष्य में तकलीफ देय बन जाता है। अब आने वाले दिनों में डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग एक स्ट्रीप के जरिए दूरस्थ गांवों में सलाइवा (मुंह में बनने वाली लार्र) के सैंपल से बीमारी जल्द पकड़ने का तरीका इजाद करेगा। ताकि समय रहते 6 घंटे के कूलिंग विंडो पीरीयड में शिशुओं को हायर सेंटर पहुंचाया जा सके।
शिशु रोग विभाग के वरिष्ठ आचार्य व चाइल्ड न्यूरोलॉजी एक्सपर्ट डॉ. मनीष पारख ने बताया कि इस स्ट्रीप को तैयार करने की तैयारी शुरू हो चुकी है। ये स्ट्रीप आइआइटी जोधपुर व जेएनवीयू के फार्माकोलॉजी विभाग के साथ इसका निर्माण कराया जाएगा। कॉलेज के पूर्व पूर्व रेजिडेंट डॉ श्रीदेवी व डॉ. सोनम शर्मा ने इस पर रिसर्च भी किया। इस उपलिब्ध के लिए प्रिंसिपल डॉ. दिलीप कच्छवाह ने शिशु रोग विभाग की टीम को बधाई दीं। इस पूरे रिसर्च में बायोकेमेस्ट्री के सीनियर प्रोफेसर व एचओडी डॉ. जयराम रावतानी, डॉ. मनीषा गुर्जर व टीम का सहयोग रहा। हालांकि अब तक लार्र से एक एमएल सैंपल के जरिए टेस्ट किए जाते थे, लेकिन स्ट्रीप में एक एमएल लेने की जरूरत तक नहीं रहेगी।
छोटे सेंटरों पर सुविधाओं की कमीजोधपुर के गांवों व संभाग के अन्य सेंटर्स पर डिलीवरी के बाद कई शिशुओं में बर्थ एसफिक्सिया के लक्षण देखने को मिलते है। लेकिन वहां समय पर पहचान नहीं हो पाती। कुछेक घंटे बाद शिशु की ओर से मां का दूध नहीं पीना व मिर्गी आने पर चिकित्सकों को बीमारी का पता लगता है। फिर वे जिला अस्पताल और आगे मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में भेजते है। जब तक िस्थति नियंत्रण से बाहर हो जाती है।
ये होता है इलाज-एसफिक्सिया में शिशुओं के पूरे शरीर को कुलिंग में रखा जाता है।
– जिस प्रकार मानव शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस रहता है। उसी प्रकार इसमें शिशुओं को 32 से 34 डिग्री के तापमान में रखा जाता है।-ये सुविधा शिशु को जन्म लेने के छह घंटे भीतर उपलब्ध कराई जाती है। इसे कूलिंग विंडो टाइम कहा जाता है।
– नवजात शिशुओं का इइजी की सबसे बेहतर तकनीक व उपचार की सुविधा भी पूरे राजस्थान में केवल जोधपुर में डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग के पास उपलब्ध है।
खून व लार्र में बढ़ा हुआ मिल जाता है एलडीएच- शिशुओं में एसफिक्सिया के दौरान ब्लड के साथ लार्र में भी एलडीएच की मात्रा बढ़ जाती है।
– ग्लूकोमीटर की स्ट्रीप के जरिए जिस प्रकार डायबिटीज मापी जाती है, उसी तरह आने वाले दिनों में एलडीएच लेवल भी स्ट्रीप के जरिए पता चलेगा।
Source: Jodhpur