जोधपुर. आ मरुधरा री धरती है अर मायड़ री ओळखाण मायड़ री लिखावट नी दिखी। कारड भी फिरंगियां री जुबान मांय छपियो अर बांकीदास, विजयदान देथा , शक्तिदान कविया री धरती माथै आ कांई रापड़ रोळो है? धरती कदैई किनीं फरक नीं करिया करै। जद धरती रो हेत सगळा सारू बरोबर हुया करै। पण अठै तो म्हारी म्हारी छालियां रो माहौल दिख रियो है।
नाराज रचनाकारों ने पत्रिका से कहा कि इस उच्छब में मीरा पर अथॉरिटी और राजस्थानी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कल्याणसिंह शेखावत और बाबा रामदेव विषय विशेषज्ञ के साथ राजस्थानी भाषा साहित्य कला व संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सोनाराम विश्नाई और राजस्थानी साहित्य कला संस्कृति व इतिहास की 40 से अधिक पुस्तकों के लेखक डॉ मनोहरसिंह राठौड़ का नाम ही नहीं है।
उनकी नाराजगी यह भी है कि अंजन री सीटी में म्हारो मन डोले…रे गायक चावा लोक कलाकार प्रजापति तो नहीं दिखे। वै कैयो क संस्कृति रे उच्छब मांय जनता तो दिखी ईज कोनी। मिर्जा गालिब कैयां जूं क- देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ। उन्होंने बताया कि यहां कुल जमा 22 लोग ही दिख्या। उस पर तुर्रा यह कि कोई भी व्यक्ति कोई भी चीज नकद राशि देकर नहीं खरीद सकता। इस पर भी लोगों ने यह कह कर रोष प्रकट किया कि लोक संस्कृति रै नावं माथै खरीदारी रो बाजार सजियो है। आमजन की जगह केवल एण्ड्रोइड फोन धारकों को प्रवेश देना गलत है। राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. श्यामसुंदर भारती, पुष्पलता कश्यप, नाहरसिंह जसोल,मनोहरसिंह राठौड़, कैलाश कबीर, सत्यदेव संवितेंद्र, शिवदानसिंह जोलावास, निर्मला राठौड़ और सुखदेव गौड़ और राजस्थानी मंच संचालक जफर खान सिन्धी और महेंद्रसिंह लालस के नाम भी नदारद रहे।
प्रबुद्ध साहित्यकारों की नजर में
– राजस्थानी के प्रबुद्धजनों को निमंत्रण सम्मानपूर्वक नहीं
– पूरा परिसर साहित्य केन्द्र की जगह समानान्तर व्यवसाय केन्द्र ज्यादा लगा
– क्राफ्ट बाजार, राजस्थान हाट के नाम पर कई तरह के महंगे प्रॉडक्ट
– अधिकांश सेशन में नाम मात्र गिने चुने लोगों की मौजूदगी से वक्ताओं में निराशा
राजस्थानी का आयोजन हो रहा है और राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकारों की उपेक्षा की गई है। बाहर से आने वाले को नाम पता नहीं हैं, लेकिन जिन्होंने सूची बनाई और नाम सुझाए, उन्होंने राजस्थानी के जमीन से जुड़े साहित्यकारों को शामिल नहीं किया। यह बहुत गलत है।
– डा.सत्यदेव संवितेंद्र, अट्ठारह पुस्तकों के लेखक और सदस्य, जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी।
लोक कला अर संस्कृति री बात है जदै राजस्थानी रै सगळा लोगां ने बुलाणो चाइजे। लोक म्हनै तो बुलायोई ज कोनी। म्हने की ठा नी। -कालूराम प्रजापति, प्रख्यात लोक कलाकार।
Source: Jodhpur