Posted on

रतन दवे
सूरत गुजरात
गुजरात में चुनाव और गूंज राजस्थान तक नहीं हों , यह हो ही नहीं सकता। पंद्रह लाख राजस्थानी सीधे तौर पर गुजरात में वोट देंगे और परोक्ष तौर पर वागड़, गोढ़वाड़, मारवाड़ और थार की सीमाएं ही नहीं जिंदगी गुजरात से जुड़ी है। हारी-बीमारी से लेकर रोजगार और तरक्की की राह गुजरात तक जाती है। गुजरात में राजस्थानी ताकत झौंकी हुई है तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र भी सीधे तौर लाखों रहवासियों की वजह से गुजरात चुनावों में जोश-खरोश भर रहे है।
गुजरात के कच्छ,बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली, महीसागर और दाहोद जिलों से राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, जालौर और बाड़मेर की सीमा जुड़ी है। सरहद भले ही इन जिलों से ही लगती है लेकिन गुजरात में 15 लाख राजस्थानी कोने-कोने में फैले है। सूरत और अहमदाबाद में 5 लाख राजस्थानी है। जय-जय गरवी गुजरात बोलते हुए नहीं थकते राजस्थानियों को गुजरात ने रोजगार और तरक्की दी है। कपड़ा हों या हीरा, जमीन हों या खेती, रेस्टोरेंट या खमण-फाफड़ा की दुकानें जहां राजस्थानी ने काम शुरू किया,गुजरात उसको दिन दूनी रात चौगुनी कमाई देकर आगे बढ़ाने लगा तो ये राजस्थानी गुजराती हो गए। अब, राजनीति के दौर में जब गुजरात सरकार चुनने लगा है तो गूंजने राजस्थान लगा है। राजस्थान के दोनों मुख्य दलों कांग्रेस भाजपा ने अपनी ताकत यहां झौंक दी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के गुजरात प्रभारी है और उनकी नायकी में समूचे राज्य से मंत्री-विधायक-सांसद मैदान में कूद पड़े है। भाजपा की कमान केन्द्र के तीन राजस्थानी मंत्रियों ने संभाली है गजेन्द्रसिंह शेखावत,अर्जुन मेघवाल और कैलाश चौधरी और प्रतिपक्ष नेता राजेन्द्र राठौड़ सहित कई दिग्गज नाम है। राजनीति के पंडित इसमें यह ख्याल भी रख रहे है कि जातिगत और क्षेत्रवार समीकरण साधने के लिए किस नेता को कहां भेजना है,वहां उसका उपयोग होने लगा है।
इधर महाराष्ट्र दूसरा राज्य है जो गुजरात चुनावों से राजस्थान की तरह ही जुड़ा है। असल में 1 मई 1960 को बॉम्बे राज्य के दो हिस्से हुए जिससे एक गुजरात बना और दूसरा महाराष्ट्र। लगाव का यह सिलसिला व्यापार, रोजगार, रिश्तेदारी से अभी भी जुड़ा है। गुजरात में चुनाव को लेकर महाराष्ट्र के भाजपा-कांग्रेस के सभी दिग्गजों ने जोर लगा दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने तो मतदान के दिन गुजरात से लगते पालघर, नासिक, नंदुरवर और धुले जिलों में रहने वाले गुजरातियों के लिए एक दिन का अवकाश भी घोषित कर दिया है,ताकि वे वोट दे सके। 12 लाख मराठी तो अकेले सूरत मे ंरहते है, गुजरात मे मराठियों का आंकड़ा राजस्थानियों के करीब-करीब है।
उत्तर भारत यानि हिन्दी भाषियों में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के लोग गुजरात में कम नहीं है। 5 से 7 लाख लोग है और योगी आदित्यनाथ और कमलनाथ इनको प्रभावित करने के लिए लगातार गुजरात के दौरों पर है। गुजरात के चुनावों की गूंज यहां खत्म नहीं होती है। यहां तमिलनाड़ू,उडि़सा, छत्तीसगढ़ और बिहार से आए लोग है। आदिवासियों के इलाकों में इसका प्रभाव है। हालांकि आदिवासी अब दक्षिण गुजरात में भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ जुड़े है लेकिन इनको प्रभावित करने वालों में शरद पंवार, रामविलास पासवान और नितिशकुमार भी रहे है। आदिवासियों का यह इलाका घूम-फिरकर राजस्थान की ओर आता है,जहां राजस्थानी नेताओं ने कमान संभाल ली है।

Source: Barmer News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *