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रतन दवे, बाड़मेर । बाड़मेर में एक कलक्टर ऐसे भी रहे है जिन्होंने पाकिस्तान के छाछरो तक कलेक्ट्री की है और करीब ग्यारह महीने तक। अब उनकी उम्र 79 वर्ष की है और सेवानिवृत्ति के बाद फक्र से बताते है कि हम तो पाकिस्तान तक कलेक्ट्री कर आए है, युद्ध लोगों ने सुना है..हमने देखा है। 1971 के बाड़मेर में कलक्टर रहे आईसी श्रीवास्तव विजय दिवस पर पत्रिका से अनुभव साझा करते हुए में बोले- 8000 वर्ग किमी तक पहुंच गया था बाड़मेर।

दिसंबर 1970 में मैं 27 साल का था, पहली कलेक्ट्री बाड़मेर की मिली थी। उत्तरप्रदेश के जोनपुर में जन्मा,राजस्थान में पढ़ा। पढ़ाई बाद इतने दूर इलाके में आया। बच्चे का जन्म हुआ ही था, पति-पत्नी दोनों इतने दूरस्थ इलाके में आए तो अलग ही लग रहा था। 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध की घोषणा हुई। कलक्टर बंगलों में बंकर बनाकर पत्नी और बच्चे को बैठा दिया और मैं सुबह से रात तक युद्ध की विषम प रिस्थितियों में ड्युटी पर था। छोटे शहर बाड़मेर में जमीन से आसमान तक का पूरा युद्ध मैने और पत्नी ने देखा और एक-एक पल याद है। भारत की सेना ने अदम्य साहस और वीरता बॉर्डर के इस इलाके से दिखाई और हम 7 दिसंबर को पाकिस्तान के छाछरो तक पहुंच गए और 14 दिसंबर तक परबतअली (न्यूछोर) और नगरपारकर हमारे कब्जे में था।

पाकिस्तान तक बाड़मेर कलक्टर
जमीन कब्जे में आई तो छाछरो में तहसीलदार बाड़मेर को बैठाया गया। मेरे साथ पुलिस अधीक्षक शांतनुकुमार थे, पुलिस का थाना भी वहां हो गया। ये बाड़मेर का कब्जा था। 100 किमी भीतर और 8000 वर्गकिमी तक बाड़मेर हो गया। मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खां खुद आए थे।ैं तब बाड़मेर कलक्टर को (परबतअली)न्यूछोर-नगरपारकर तक का कलक्टर का प्रभार दिया गया।

दवा-शरणार्थी मदद और व्यवस्था
युद्ध में हम जमीन जीते थे लेकिन जिम्मेदारी कम नहीं थी। गडरारोड पर अतिरिक्त जिला कलक्टर गणेश शंकर व्यास और डिप्टी पुलिस छुगसिंह को नियुक्त किया गया था, जो पाकिस्तान तक का प्रभार संभाले हुए थे। गडरारोड़ से लेकर (परबतअली)न्यूछोर तक दवा और राशन पहुंचाया जाता था। शरणार्थियों की मदद करते थे। जो लोग भारत आ गए थे, उनको मकान का सामान लाने की इजाजत देते थे।

1972 तक रहा कलक्टर पाकिस्तान तक
शिमला समझौता होने के बाद यह जमीन वापिस पाकिस्तान को चली गई। अक्टूबर 1972 में कलक्टर बाड़मेर पुन: हो गया। करीब ग्यारह महीने तक यह बाड़मेर की पाकिस्तान तक की कलेक्ट्री थी, 79 की उम्र में भी याद करता हूं ,तो रोमांचित हो जाता है। उस समय हम कई बार पाकिस्तान गए। पहली बार मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खां के साथ पहुंचकर न्यूछोर के परबतअली तक की यात्रा की थी।

अविस्मरणीय
2003 में सेवानिवृत्त हो गया। 79 की उम्र में अभी जयपुर के जवाहरनगर में हूं। मैं और पत्नी अर्चना श्रीवास्तव आज भी उन पलों को यद करते है तो आसमां की तरह देखकर लगता है…उत्तरलाई में विमानों की जंग अभी हमारे सामने है। समय बीत गया, लेकिन जीवन में यह सदैव याद रहेगा।

Source: Barmer News

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