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बालोतरा- यह तेरी मेरी यारी, यह दोस्ती हमारी भगवान को पसंद है…………..हिंदी फिल्म के मशहूर गाने के बोल गुरुवार को नगर में कुछ ऐसा ही साबित होते नजर आए, जब तीन दशक से अधिक पुराने दोस्तों ने कुछ घंटे के भीतर ही इस दुनिया से विदाई ली। एक ही श्मशान घाट में कुछ घंटों के अंतराल में इनका अंतिम संस्कार किया गया। मृत्यु के बाद भी इनके दोस्ती निभाने के दस्तूर के समाचार को सुनकर परिवार आस-पड़ोस के लोगों को भी अचरज हुआ।
इन्होंने इनके दोस्ती के रिश्ते की मुक्त कंठ से सराहना की।

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बालोतरा में बुधवार को दोस्ती की मिसाल देखने को नजर आई। जब दो दोस्तों ने कुछ समय बाद ही दम तोड़ा, इनका अंतिम संस्कार भी एक ही श्मशान घाट में हुआ। जानकारी के अनुसार गांव कालूडी निवासी बाबूलाल दवे हाड़ी, जो पैतृक पूजा पाठ का काम करते हैं। गांव से कई दशक पहले बालोतरा आकर बसे थे। वहीं पंजाब निवासी रामलाल कौशल उर्फ राम पंजाबी भाई जो कई दशक पहले रोजगार की तलाश में बालोतरा आए थे। औद्योगिक क्षेत्र में कभी मिस्त्री का काम करने रामलाल यहीं बस गए। एक मुलाकात पर इन दोनों के बीच दोस्ती हुई। गुजरते वक्त के साथ यह दोस्ती बहुत अधिक मजबूत हुई। इस पर दोनों ही दोस्त हर दिन आपस में मिलते।

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घर, परिवार, रिश्तेदारी,समाज , शहर आदि आदि को लेकर घंटों घंटों बातें करते। समय कब बीतता, इन्हें भी पता नहीं चलता। जब कभी मुलाकात नहीं होती ,तब दोनों फोन पर बात करते। 73 वर्षीय बाबूलाल दवे व 75 वर्षीय रामलाल कौशल पिछले लंबे समय से घर पर परिवार सदस्यों के साथ समय बिता रहे थे। रोज आपस में मिलते व घंटों बातें करते हैं। दोस्ती इतनी प्रगाढ़ थी की रामलाल कौशल पंजाब जाने पर भी बात करना नहीं भूलते। हर दिन बात करते। पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ बाबूलाल दवे का मंगलवार रात 9 हृदयाघात से निधन हुआ। इसके कुदरत का करिश्मा ही समझिए की करीब 3:30 घंटे बाद उनके मित्र रामलाल कौशल का भी हृदयाघात से देहांत हुआ। बुधवार शाम नगर के सार्वजनिक श्मशान घाट में करीब एक घंटे के अंतराल में दोनों ही मित्रों का अंतिम संस्कार किया गया। इनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। शामिल लोगों को जब दोस्ती के इस किस्से के बारे में जानकारी हुई, तब इसे सुनकर हर कोई हतप्रभ रह गया। दोस्ती के संबंध को नमन करते हुए इन्होंने भगवान का भी आभार जताया।
व्यू. मेरे पिता व रामलाल कौशल के बीच तीन दशक से अधिक समय से दोस्ती थी। वे पिताजी को बड़े भाई कह कर पुकारते। हर दिन मिलते। मुलाकात नहीं होने वाले दिन फोन पर बात करते। वह पंजाब जाते, तब वहां से भी पिता को फोन करते । बुधवार को उन्होंने अंतिम बार शाम 5:30 बजे बात की। कुछ घंटों के बाद ही दोनों ही मित्रों का देहांत हुआ व एक ही श्मशान घाट में अंतिम संस्कार हुआ। दु:ख बहुत है लेकिन सच्ची दोस्ती को लेकर गर्व भी बहुत अधिक है।
हीरालाल दवे पुत्र
मेरे चाचा रामलाल कौशल व बाबुलाल दवे के बीच बहुत ही अधिक गहरी दोस्ती थी। ऐसा काेई दिन नहीं गुजरता ,जब दोनों मिलते अथवा आपस में
टेलीफोन पर बात नहीं करते। इन्हें देख बहुत अधिक खुश होती। दोनों ने दोस्ती के सच्चे संबंध को निभाते हुए कुछ ही घंटों में दुनियां से विदाई ली।
दोस्ती के इस सच्चे रिश्ते को पूरा परिवार, मौहल्ले के लोगों ने मन से नमन किया।
राजेश पंजाबी भतीज

Source: Barmer News

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