मैं थार एक्सप्रेस: 122 साल पुराना मार्ग…जमीन बंटी लेकिन लोग जुड़े रहे
…मुझे आने-जाने दो भारत-पाक
रतन दवे.
मैं थार एक्सप्रेस हूं..। भारत की एकमात्र ऐसी रेल जो सबसे जुदा। जुदा होने का पहला तर्क जिस मार्ग पर मैं चली वह 122 साल पुराना है…जब भारत और पाकिस्तान अलग नहीं थे। रियासत का काल। जोधपुर के तात्कालीन शासक सरदारसिंह के सुझाव पर यह तय हुुआ। व्यापारिक मार्ग के साथ रिश्तों को जोडऩे के लिए इस मार्ग को बनाया गया। 22 दिसंंबर 1900 से मेरे इस मार्ग पर रेल चलनी शुरू हुई। मीलों पैदल या ऊंट पर सफर कर कराची जाने वाले राजस्थान(वर्तमान) और गुजरात (मौजूदा)के इलाके के लोगों को अब इस मार्ग से सहूूलियत हुई। सच मानिए यहां व्यापार के लिए बड़ी संख्या में लोग जाते थे, लेकिन इससे बड़ा था रोटी-बेटी का रिश्ता। 122 साल पहले कराची, अमरकोट, छाछरो, मिठी, मीरपुरखास, चेनार से लेकर पूरे सिंध इलाके में और इधर बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, जोधपुर, सिरोही, बीकानेर, कच्छ सौराष्ट्र तक मेरा यह मार्ग रिश्तों को जोड़ता। बारातें आती-जाती, तीज-त्यौहार पर दूरियां आसानी से तय होती और हारी बीमारी में पहुंचते। रिश्तों जीने वाला यह मार्ग …फिर याद दिलाऊं कि मैं अलग हूं, क्योंंकि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया औैर 15 अगस्त 1947 को भारत। दोनों देशों ने एक दूसरे को बांट लिया। सरहद पर एक लकीर खींच दी गई कि इधर रहेगा वो भारत और उधर रहेगा वो पाकिस्तान…। लोग बंट रहे थे। जमीन बंट रही थी। जायदाद बंट रही थी। देश बंट रहा था और सबकुछ दो भाग होते नजर आ रहे थे। इधर और उधर बसे लाखों लोगों को यह लग रहा था सबकुछ खत्म हो रहा है। एक बटा दो हो रहे हिस्से में रिश्तों को लग रहा था कुल्हाड़े से काटा जा रहा है। एक भुजा उधर-दूसरी इधर..। कहीं छोटा भाई इधर आ रहा था तो बड़ा उधर। मां-बाप इधर रह रहे थे तो संतानें उधर। मजबूरी थी.. बहिनें,बेटियें,बुआ जो इधर और उधर थी,उनके लिए यह रिश्तों का बंटवारा हुआ। बूढे नाना-नानी को अकेला नहीं छोड़ सकता, छोटे भाई का सहारा बनना था या एक साथ सभी ने तय कर लिया था कि अब परिवार, कुुनबा या पूरा गांव ही एक जगह बसेंगे। वे सारे रातों रात बंट रहे थे, लेकिन मेरा यह मार्ग..नहीं बंटा। रेलमार्ग को दोनों ही मुुल्कों ने यह समझकर कि यह रहेगा तो रिश्ते कायम रखेंगे,मेरे इस मार्ग को कायम रखा। 1947 में इसी मार्ग से 60 हजार से अधिक शरणार्थी इधर आए और बड़ी संख्या में उधर गए। मीटरगेज पर चलने वाली मेरी छोटी बहिन(मीटरगेज रेल) के कोयले के र्इंजन ने कितने ही लोगों को उनकी चाह की जमीन पर बसाया। दर्द के दिनों की साक्षी रही उस रेल ने 1947 में सबकी मन की जगह पर भारत-पाकिस्तान में बसने को यात्रा करवाई तो इसके बाद 1965 के युद्ध तक वह चलती रही अनवरत। सिंध से कोई भारत आता तो भारत से कोई सिंध-कराची चला जाता। दो मुल्कों में बंटे रिश्तों को कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि बंटवारा हुआ हैै। जमीन बंटी थी लेकिन लोग जुड़े थे….इसलिए मैने कहा कि मैं जुदा हूं..मैं रेल नहीं रिश्तों का मेल हूं..122 साल पुराना(क्रमश:)
Source: Barmer News